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  • SBI ने गर्भवती महिलाओं के काम पर लगायी रोक! स्वाति बोलीं- इस महिला विरोधी नियम को वापस ले बैंक

    SBI ने गर्भवती महिलाओं के काम पर लगायी रोक! स्वाति बोलीं- इस महिला विरोधी नियम को वापस ले बैंक

    भारतीय स्टेट बैंक ने 28 जनवरी को एक दिशानिर्देश जारी किया है। इस दिशानिर्देश के अनुसार तीन महीने से अधिक गर्भवती महिला कर्मियों को ‘अस्थायी रूप से अयोग्य’ माना जाएगा। ऐसी महिला डिलवरी होने के बाद 4 महीने के भीतर बैंक में काम करने के लिए शामिल हो सकती है।

    एसबीआई ने नई भर्तियों या पदोन्नत लोगों के लिए अपने नवीनतम मेडिकल फिटनेस दिशानिर्देशों में कहा कि जो महिला तीन महीने से कम गर्भवती होगी वो महिला उम्मीदवारों के लिए फिट मानी जाएगी ।

    बता दें कि इससे पहले छह महीने की गर्भवती महिलाओं को भी बैंक में कई शर्तों के साथ काम करने की अनुमति थी। कर्मी को एक स्त्री रोग विशेषज्ञ का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना आवश्यक होता था, जिसमें इस बात पुष्ट होती हो कि उस दौरान बैंक में नौकरी करने से महिला के गर्भावस्था या भ्रूण के सामान्य विकास में कोई परेशानी नहीं होगी। ना ही उसका गर्भपात होगा ।

    इस नियम पर नाराजगी जताते हुए दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख स्वाति मालिवाल ने ट्वीट करते हुए लिखा कि ऐसा लगता है कि भारतीय स्टेट बैंक ने 3 महीने से अधिक गर्भवती महिलाओं को सेवा में शामिल होने से रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं और उन्हें ‘अस्थायी रूप से अयोग्य’ करार दिया है। यह भेदभावपूर्ण और अवैध दोनों है।क्योंकि यह कानून के तहत प्रदान किए जाने वाले मातृत्व लाभों को प्रभावित कर सकती है। ​हमने उन्हें नोटिस जारी कर इस महिला विरोधी नियम को वापस लेने की मांग की है।

    स्वाति मालीवाल द्वारा ट्वीट किए गए नोटिस में, दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) ने कहा है कि एसबीआई ने 31 दिसंबर को एक सर्कुलर में उन महिलाओं को काम में शामिल होने से रोक दिया है, जो नियत प्रक्रिया के माध्यम से चुने जाने के बावजूद तीन महीने से अधिक की गर्भवती हैं।

    भारतीय स्टेट बैंक ने अभी इस मामले पर कोई जवाब नहीं दिया है।डीसीडब्ल्यू ने एसबीआई को नोटिस का जवाब मंगलवार तक देने को कहा है।

  • इज़्ज़त के नाम पर दिलशाद की हत्या, गिद्ध मीडिया ने उसे ही बलात्कारी और लव जिहादी बता दिया

    इज़्ज़त के नाम पर दिलशाद की हत्या, गिद्ध मीडिया ने उसे ही बलात्कारी और लव जिहादी बता दिया

    गोरखपुर कचहरी में गोली मारकर एक लड़के की सरेआम हत्या कर दी गई और मीडिया इसपर जश्न मनाने लगा क्योंकि मरने वाले का नाम दिलशाद था।

    बिना मामले की जांच पड़ताल किए मीडिया उसे बलात्कारी और लव जिहादी बताने लगा क्योंकि उसके नाम के आगे टाइटल ‘हुसैन’ लिखा हुआ था। एक प्रेमी की सच्चाई जाने बिना मीडिया ने उसे दरिंदा घोषित कर दिया क्योंकि वो एक मुसलमान था।

    और इज़्ज़त के नाम पर हुई दिलशाद की मौत पर देशभर में चुप्पी छाई हुई है क्योंकि वो एक गरीब मुसलमान था। इस मुल्क़ में मुसलमान होकर बेदाग़ जीना आज के दौर में दूभर हो गया है, ये तो सबको पता है।

    मगर मरने के बाद भी किसी मुसलमान को दागदार बना देने की जो साज़िश चल रही है, क्या इसके बारे में आपको पता है?

    आइए दिखाते हैं मीडिया की इसी करतूत को, कि कैसे मज़हब देखकर पीड़ित को दरिंदा बता दिया जा रहा है। पहले इन खबरों की हेड लाइन पर नजर डालिए और समझिए दिलशाद की मौत का कैसे तमाशा बनाया जा रहा है।

    सांप्रदायिकता में सबको पीछे छोड़ देने वाला चैनल सुदर्शन न्यूज़ लिखता है-

    “पिता ने गोली मारकर बलात्कारी, लव जिहादी का लिया प्रतिशोध, जानिए क्या है पूरा मामला।”

  • रिपब्लिक TV ने मुल्ला याकूब की जगह लगाई बसपा नेता की तस्वीर, लोग बोले- ये गोदी मीडिया है, यहां कुछ भी संभव है

    रिपब्लिक TV ने मुल्ला याकूब की जगह लगाई बसपा नेता की तस्वीर, लोग बोले- ये गोदी मीडिया है, यहां कुछ भी संभव है

    अफगानिस्तान पर तालिबान कब्जे के बाद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का बाज़ार गर्म है। बड़े बड़े राजनीतिकार और भौगोलिक राजनीति विशेषज्ञ इसपर अपनी अपनी राय दे रहे हैं।

    गौरतलब है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी बाद तालिबान पूरी तरह से अफगानिस्तान पर हावी हो गया है। उसने सिर्फ देश पर ही कब्ज़ा नहीं किया बल्कि अमेरिकी सेना के हथियार भी कब्जे में लिए हैं।

    जिसके बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि तालिबान की ताकत और अधिक बढ़ गयी है। इसी मुद्दे पर बहस कराने के लिए रिपब्लिक टीवी दर्शकों और सोशल मीडिया यूज़र्स के निशाने पर आ गया है।

    दरअसल बात यह है कि डिबेट के दौरान रिपब्लिक टीवी ने तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकुब की जगह मायावती की पार्टी बीएसपी के नेता हाजी याकूब कुरैशी की फोटो लगा दी।

    जिसके बाद सोशल मीडिया यूजर्स ने रिपब्लिक टीवी को आड़े हाथों लिया है। लोग उस चित्र का स्क्रीनशॉट लेकर अलग अलग तरीके से रिपब्लिक टीवी को ट्रोल कर रहे हैं।

    हारून खान नाम के एक यूजर ने ट्विटर पर लिखा कि “तालिबान इतना शातिर है कि अपने लीडर मुल्ला उमर के बेटे याकूब को मेरठ बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ाया और बंदूक के बल पर विधायक फिर मंत्री भी बना दिया,देश की इंटेलिजेंस को इसकीं भनक भी नही लगी,लेकिन आज Republic Bharat ने सबसे बड़ा खुलासा कर दिया”|

    वहीं एक फेसबुक यूजर लिखते हैं कि “भाई मुझे तो इस पर कोई आश्चर्य नहीं हो रहा है क्योंकि यह भारतीय मीडिया है, कुछ भी संभव है”।

    एक ट्विटर यूजर लिखते हैं- “फ़ोटो है मेरठ से BSP MLA हाजी याक़ूव कुरैशी की और ख़बर है तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के लड़के मुल्ला याक़ूव की, ये मीडिया और इसकी रीसर्च, हाय| किन किन बातों पर लानत भेजें| अब तो खुद लानत जाने से इंकार करने लगी है|

    समाज के मुस्लिम तबके के लिए इतने लापरवाह रवैये का जवाबदेह कौन

    आपको बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि अख़बार या किसी चैनल की खबर पर किसी गलत सख्श की फोटो लगा दी गयी हो।

    भारतीय मीडिया के द्वारा ऐसी गलतियां आम है| पर इन सब के बीच गौर करने वाली बात यह है कि इन मामलो में ज्यादातर मुस्लिम फोटो का ही इस्तेमाल क्यों किया जाता है।

    जैसे कभी किसी आतंकवादी की जगह किसी भारतीय मुस्लिम फोटो का इस्तेमाल, तो कभी किसी घटना से उनका नाम जोड़ा जाना| ऐसी बातें भारतीय मीडिया में बड़ी आम हैं | पर सवाल यह खड़ा होता है कि इन सब की जिम्मेदारी क्या बनती है|

    यह समाज की किस मानसिकता को जन्म देता है और इनके प्रति कौन जवाब देह है। देश के एक तबके के साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्यों? यदि मीडिया ऐसी गलतियां दोबारा करता है तो उसके लिए क्या प्रावधान है?

    समाज के एक तबके के प्रति नफरत दर्शाता है यह वाकिया या फिर यह एक गलती मात्र है? वजह चाहे जो भी हो पर ऐसी गलतियां और ऐसी गतिविधियां हमारे समाज के एक अलग चरित्र को दर्शाती हैं।