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  • BJP नेताओं की रंगभेदी मानसिकता आई सामने! काला रंग देखकर तमिल लेखक को बताया झुग्गीवासी

    BJP नेताओं की रंगभेदी मानसिकता आई सामने! काला रंग देखकर तमिल लेखक को बताया झुग्गीवासी

    उत्तर प्रदेश में विकास दिखाने के लिए कोलकाता का फ्लाईओवर और अमेरिका की फैक्ट्री इम्पोर्ट करने के बाद हाल ही में भाजपा ने चीन से पूरा का पूरा एयरपोर्ट इम्पोर्ट कर लिया था।

    अब भाजपा का एक नया पोस्टर वायरल हो रहा है जिसमें तमिल के प्रसिद्ध साहित्यकार और बुद्धिजीवी पेरुमल मुरुगन को झुग्गीवासी के रूप में दिखाया गया है।

    दरअसल अगले साल दिल्ली में नगर निगम (MCD) का चुनाव होने वाला है। लम्बे समय से MCD की सत्ता पर काबिज भाजपा इस चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार शुरू कर चुकी है।

    इसी चुनावी प्रचार का हिस्सा है भाजपा का ‘झुग्गी सम्मान यात्रा’ जिसके पोस्टर में पेरुमल मुरुगन को झुग्गीवासी के रूप में दिखाया गया है।

  • 3 दिन से जम्मू-कश्मीर में नहीं प्रकाशित हुए अख़बार, पत्रकारों के संगठन ख़ामोश क्यों?

    3 दिन से जम्मू-कश्मीर में नहीं प्रकाशित हुए अख़बार, पत्रकारों के संगठन ख़ामोश क्यों?

    अनुच्छेद 370 हटाए जाने के चार दिन बाद भी जम्मू कश्मीर लॉकडाउन का सामना कर रहा है। फोन, इंटरनेट, ब्रॉडबैंड और केबल टीवी सेवाओं पर प्रतिबंध जारी है। साथ ही पिछले तीन दिनों से राज्य में अख़बारों का प्रकाशन भी नहीं हुआ है।

    राज्य में अख़बारों का प्रकाशन सोमवार 5 अगस्त तक ही हुआ है। 6 अगस्त से अभी तक राज्य में किसी भी अख़बार का प्रकाशन नहीं हुआ है। साथ इंटरनेट और ब्रॉडबैंड पर प्रतिबंध के कारण ई-पेपर्स भी वेबसाइट्स पर पब्लिश नहीं हुए हैं। इसी तरह कश्मीर की न्यूज़ वेबसाइट्स भी पिछले तीन दिनों से बंद पड़ी हैं।

    हैरानी की बात तो यह है कि किसी भी भारतीय पत्रकारों के संगठन ने इसपर कोई चिंता व्यक्त नहीं की है। प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया, इंडियन न्यूज़पेपर सोसाइटी, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया जैसे सभी संगठन इसपर ख़ामोश हैं।

    हालांकि न्यूयॉर्क स्थित कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (CPJ) ने इसपर अपनी चिंता व्यक्त की। CPJ के एशिया कार्यक्रम के वरिष्ठ शोधकर्ता आलिया इफ्तिखार ने कहा, “कश्मीर के लिए इतने महत्वपूर्ण समय में एक बड़े पैमाने पर संचार व्यवधान एक स्वतंत्र प्रेस से सूचना के अधिकार का उल्लंघन है”।

    उन्होंने कहा, “हम प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनके प्रशासन से अपील करते हैं कि कश्मीर के सभी संचार प्रतिबंधक हटा दिए जाएं ताकि पत्रकार स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट कर सकें। संचार प्रतिबंध का लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है”।

  • 54 करोड़ आधार EC के पास-एक भी नहीं हुआ लिंक, करोड़ों की डिटेल लेकर क्या कर रहा आयोग?

    54 करोड़ आधार EC के पास-एक भी नहीं हुआ लिंक, करोड़ों की डिटेल लेकर क्या कर रहा आयोग?

    आप अपनी मर्ज़ी से अपने आधार कार्ड को वोटर आईडी से जोड़ सकते है, लेकिन ऐसा नहीं करने पर वोटर लिस्ट से नाम नहीं काटा जाएगा। यह भरोसा सदन के भीतर एक लिखित जवाब में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने दिया।

    मंत्रीजी के इस भरोसे के आने तक देश के 54,32,84760 करोड़ मतदातओं ने अपने आधार नंबर चुनाव आयोग को सौंप दिये हैं।

    चुनाव आयोग ने आधार को वोटर कार्ड से लिंक कराने के लिए 1 अगस्त से स्वैच्छिक अभियान शुरू किया। इस अभियान को लेकर आरटीआई के माध्यम से जानकारी चुनाव आयोग ने इंडियन एक्सप्रेस को उपलब्ध कराई है।

    जिसके मुताबिक 1 अगस्त से शुरू हुए स्वैच्छिक अभियान में 12 दिसंबर तक पंजीकृत मतदाताओं से 54.32 करोड़ आधार नंबर एकत्र किए थे, हालांकि आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने की प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हुई है।

    17 जून को कानून मंत्रालय ने 1 अप्रैल 2023 की तिथि को आधार से मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने की अंतिम तिथि के रूप में अधिसूचित किया था।

    आरटीआई में पूछे गए सवाल कि मतदाता पहचान पत्र से कितने आधार नंबर लिंक किए गए हैं, चुनाव आयोग ने जवाब में कहा कि “मतदाता सूची/ईपीआईसी डेटाबेस को आधार डेटाबेस से जोड़ने की प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं की गई है।

    दिनांक 01/08/2022 से दिनांक 12/12/2022 तक मौजूदा मतदाताओं से प्राप्त ‘फॉर्म 6बी’ की कुल संख्या 54,32,84760 है.”

    इस सवाल के जवाब में कि कितनी एंट्री हटाई गईं या डुप्लीकेट या धोखाधड़ी के मामलों का पता चला? चुनाव आयोग ने जवाब दिया, ‘जैसा कि ऊपर बताया गया है कि कोई भी आधार लिंकिंग शुरू नहीं हुई है, इसलिए अब तक आधार लिंकिंग के आधार पर ऐसी किसी भी एंट्री की पहचान नहीं की गई है।

    ’आरटीआई के जवाब में यह भी बताया गया है कि चुनाव आयोग ने 4 जुलाई को राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश दिया था कि 1 अगस्त से ‘फॉर्म 6बी में स्वैच्छिक आधार पर मौजूदा मतदाताओं की आधार संख्या के इक्ट्टठा करने के लिए कार्यक्रम’ चलाया जाए।

    हालांकि चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने इस पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया कि लिंकिंग का काम अब तक शुरू क्यों नहीं हुआ है, अगर यह 1 अप्रैल 2023 के बाद शुरू होगा तो अब तक एकत्र किए गए डेटा को चुनाव आयोग द्वारा कैसे संग्रहीत किया जा रहा है।

    इस बीच, लोकसभा में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने लिखित जवाब में बताया था कि आधार नंबर को ‘आधार डेटा वॉल्ट’ में संग्रहीत किया गया है, जो कि आधार अधिनियम-2016 पर आधारित है.चुनाव आयोग ने इससे पहले मार्च 2015 में आधार संख्या एकत्र करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया था।

    लेकिन उस साल अगस्त में इसे निलंबित कर दिया गया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जिन नागरिकों ने अपना आधार प्रस्तुत नहीं किया है, उन्हें उन लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता है जिन पर उनका अधिकार है।

  • दरोगा ने भरी सभा में दिया इस्तीफा, कहा- बीजेपी वालों ने खून पी रखा है, गाली और धमकी देकर मांगते हैं वोट

    दरोगा ने भरी सभा में दिया इस्तीफा, कहा- बीजेपी वालों ने खून पी रखा है, गाली और धमकी देकर मांगते हैं वोट

    भाजपा से परेशान जनता द्वारा नेताओं को भगाए जाने के बाद, अब भाजपा नेताओं से परेशान दरोगा ने भरी सभा में अपना त्यागपत्र दे दिया है। घटना मेरठ की है। रविवार को वन दरोगा अजीत भड़ाना ने हस्तिनापुर से सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी योगेश वर्मा की सभा में भाजपा नेताओं पर आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया।

    वन दरोगा अजीत भड़ाना ने आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी वालों ने खून पी रखा है। मंत्री, विधायक धमकाकर वोट मांगते हैं। उनसे परेशान होकर नौकरी छोड़ रहा हूँ। समाज के लिए त्यागपत्र दे रहा हूँ। अपने विभाग को भी पत्र भेज दिया है।

    जन सभा मे वन विभाग के दरोगा ने दिया त्यागपत्र, भाजपा के विधायक संगीत सोम पर लगाया आरोप, कहा खून पी रखा है, संगीत सोम फोन पर धमकी देते है PIC.TWITTER.COM/JHDW4HXHBI

    — MOHAMMAD IMRAN (@IMRANTG1) JANUARY 30, 2022

    भड़ाना ने भाजपा नेता दिनेश खटिक और संगीत सोम पर धमकी देने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, विधायक गाली देते हैं, उनकी गाली सुनें और वोट भी दें। बता दें कि संगीत सोम सरधना से विधायक हैं, वहीं दिनेश खटीक हस्तिनापुर से विधायक हैं। दिनेश खटीक भाजपा के राज्यमंत्री भी हैं।

    वन दरोगा ने भाजपा नेता अशोक कटियार पर आरोप लगाते हुए कहा, वह मेरे समाज के सम्मानित मंत्री हैं, नौकरी देने के बजाय ले रहे हैं। भी बालक को नौकरी दी हो तो बताएं।

    बुलंदशहर के वन विभाग में तैनात अजीत भड़ाना ने भाजपा पर तमाम आरोप लगाने बाद सभा में भी सपा में शामिल हो गए।

  • बुल्ली बाई ऐप मामले में दिल्ली कोर्ट ने खारिज की नीरज बिश्नोई की जमानत याचिका

    बुल्ली बाई ऐप मामले में दिल्ली कोर्ट ने खारिज की नीरज बिश्नोई की जमानत याचिका

    ‘बुली बाई’ ऐप मामल में दिल्ली की एक अदालत ने नीरज बिश्नोई की जमानत याचिका खारिज कर दी है। नीरज बिश्नोई पर बुल्ली बाई ऐप को बनाने का आरोप है। अदालत ने नीरज को सांप्रदायिक सद्भाव खराब करने वाला बताया है।

    मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने नीरज बिश्नोई की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा, अपराध की प्रकृति, आरोपों की गंभीरता और जांच के शुरुआती चरण को देखते हुए मुझे आवेदन में कोई योग्यता नहीं मिलती है और उसी के अनुसार याचिका को खारिज किया जाता है।

    साथ ही अदालत ने समुदाय विशेष की विभिन्न महिला पत्रकारों को एक सार्वजनिक मंच पर गाली देने और अपमानित करने के कृत्य को सांप्रदायिक सद्भाव पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला माना है।

    अदालत में अपनी टिप्पणी में कहा यह काम निश्चित रूप से उस समाज के सांप्रदायिक सद्भाव पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है, जहां प्राचीन काल से महिलाओं को देवी माना जाता रहा है और उनका अपमान करने का कोई भी प्रयास निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर समुदाय से जोरदार प्रतिरोध को आमंत्रित करने वाला है।

  • गोडसे के विचारों के वारिस देश की सत्ता पर विराजमान हैं, गांधी का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है

    गोडसे के विचारों के वारिस देश की सत्ता पर विराजमान हैं, गांधी का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है

    मैं एक बात के लिए गांधी की भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूं कि उस व्यक्ति ने इस बात के लिए अपनी जान की बाजी लगा दिया कि भारत-पाकिस्तान बंटबारे के बाद भी इस देश पर जितना हक हिंदुओं का है, उतना ही हक मुसलमानों का भी है। ऐसा सोचना भी सावरकर, गोडसे और आरएसएस-भाजपा की विचारधारा के पूरी तरह खिलाफ जाता है।

    मुसलमानों के प्रति अपनी खुली पक्षधरता की कीमत गांधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। आज भी ऐसे लाखों लोगों की जरूरत है, जो इस देश इस समय दमन एवं अन्याय के शिकार मुसलमानों के साथ गांधी जैसी प्रतिबद्धता के साथ खड़े हों और यदि इसके लिए जान भी गवानी पड़े तो उसकी परवाह न करें।

    यदि कोई गांधी की तरह जीने के बारे सोचता है, तो उसे गांधी की तरह मरने के लिए भी तैयार रहना है। यह एक जगह जाहिर तथ्य है कि आप जिस तरह अपनी मौत के बारे में सोचते हैं, उसी तरह आप जीवन भी जी पाते हैं।

    मौत के बारे में गांधी की चाहत थी कि वे अन्याय के खिलाफ संघर्ष करते हुए मृत्यु को प्राप्त करें और ऐसा ही हुआ। उन्हें मुसलमानों के खिलाफ होने वाले अन्याय एवं अत्याचार के विरोध की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

    हिंदू-मुस्लिम एकता कायम करने की कोशिश करते हुए, जब गणेश शंकर विद्यार्थी दंगायियों के हाथों शहीद हो गए, तो गांधी ने जो भावना प्रकट, उसमें उन्होंने साफ लिखा है कि मैं विद्यार्थी जी की तरह अन्याय के खिलाफ संघर्ष करते हुए मरना चाहता हूं।

    आखिर वही हुआ। मुसलमानों के प्रति घृणा से भरे गोडसे ने गांधी की हत्या कर दिया। उसी गोडसे के विचारों के वाहक इस देश पर कब्जा कर चुके हैं। गांधी का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है?

    प्रश्न यह है कि जो लोग खुद को गांधी के विचारों का अनुयायी कहते हैं, उनमें कितने लोग गांधी की तरह जीने के साथ गांधी की तरह मरने को तैयार हैं।

    वर्ण-जाति व्यवस्था, पितृसत्ता, श्रम और पूंजी के रिश्ते और जमींदार-भूस्वामी के बीच के संबंधों के बारे में गांधी के विचारों से मैं पूरी असहमत हूं। इस संदर्भ में विस्तृत विवेचना डॉ. आंबेडकर ने अपनी किताब गांधी और कांग्रेस ने अछूतों के लिए क्या किया के दो अध्यायों- श्री गांधी से सावधान और गांधीवाद में विस्तार से किया है, जिससे मैं पूरी तरह सहमत हूं। लेकिन डॉ. आंबेडकर की तरह मेरी भी गांधी असहमति वैचारिक हैं, न कि कोई व्यक्तिगत राग-द्वेष के चलते हैं।

    जैसा कि मैंने पहले लिखा है कि अपने वैचाारिक विरोधियों से संघर्ष की इस देश में दो परंपरा रही है-एक दलित-बहुजन परंपरा है, जो अपने वैचारिक विरोधियों को तथ्यों पर आधारित नैतिक-बौद्धिक चुनौती देती है, जैसा कि डॉ. आंबेडकर ने गांधी के साथ किया, लेकिन कभी उस व्यक्ति की हत्या करने या किसी तरह का शारीरिक नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोचती है। यहां तक की जरूरत पड़ने पर अपने समुदाय के सबसे बड़े हित को दांव पर लगाकर भी अपने विरोधी की जान बचाती है,जिसका सबसे बड़ा उदाहरण डॉ. आंबेडकर ने प्रस्तुत किया। डॉ. आंबेडकर ने पृथक निर्वाचन की अपनी सबसे प्रिय मांग (दलितों के लिए सबसे जरूरी) छोड़कर और पूना पैक्ट करके गांधी की जान बचाई।

    इसके विपरीत सावरकर के अनुगामी और हिंदू राष्ट्र को अपना आदर्श मानने वाले वाले हिंदू धर्म रक्षा की भावना से प्रेरित गोडसे ने सहिष्णु और सर्वधर्म समभाव के हिमायती और नरम हिंदू माने जाने वाले गांधी की हत्या करने में थोड़ा भी नहीं हिचका और गांधी की न केवल बर्बर तरीके से हत्या किया, बाद में भी उसे जायज भी ठहराया ( गांधी बध क्यों ?) और उस पर गर्व महसूस करता रहा है।

    यह दो परंपराओं का अंतर है। वैचारिक विरोधी की भी जान बचाने वाली परंपरा की जड़ बहुजन-श्रमण परंपरा में है, जिसके केंद्र में गौतम बुद्ध, कबीर-रैदास, जोतीराव फुले और डॉ. आंबेडकर आदि हैं।

    दूसरी परंपरा वैदिक, सनातन, ब्राह्मणवादी हिंदी धर्म की है, जो अपने वैचारिक विरोधी की हत्या में विश्वास करती है। सारे हिंदू धर्मशास्त्र और महाकाव्य हिंसा का समर्थन करते हैं, सारे ईश्वर और देवता हिंसक हैं। सबसे महान दार्शनिक ग्रंथ कहे जाने वाली गीता भी हिंसा को जायज ठहराने के लिए लिखी गई है। तथाकथित महान संत तुलसीदास की रामचरित मानस भी हिंसा से भरा पड़ा है।

    अपने वैचारिक विरोधियों के ख़िलाफ़ गोडसे के वारिसों के हिंसा का तांडव आज पूरे देश मे चरम पर पहुँच गया है।

  • अंबेडकर ने गांधी की जान बचाई और गोडसे ने हत्या कर दी, बहुजनवाद और ब्राह्मणवाद में यही फर्क है

    अंबेडकर ने गांधी की जान बचाई और गोडसे ने हत्या कर दी, बहुजनवाद और ब्राह्मणवाद में यही फर्क है

    आधुनिकाल में जिस व्यक्तित्व ने गांधी को सबसे निर्णायक बौद्धिक और नैतिक चुनौती दी उनका नाम डॉ. आंबेडकर है, दूसरे शब्दों में कहें तो गांधी के सबसे तीखे आलोचक-विरोधी डॉ. आंबेडकर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी गांधी के शारीरिक खात्में के बारे में सोचा भी नहीं, बल्कि उनकी मृत्यु पर शोक ही मनाया। मारने को कौन कहे, मारने बारे में सोचने को कौन कहे, जब गांधी की जान बचाने का समय आया (संदर्भ दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल के खिलाफ गांधी का आमरण अनशन) तो दलितों के लिए हासिल सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि को भी दांव पर लगाकर डॉ. आंबेडकर ने गांधी की जान बचाई। (पूना पैक्ट, 1932)

    इसके विपरीत सावरकर के अनुगामी और हिंदू राष्ट्र को अपना आदर्श मानने वाले वाले हिंदू धर्म रक्षा की भावना से प्रेरित गोडसे, सहिष्णु और सर्वधर्म समभाव के हिमायती और नरम हिंदू माने जाने वाले गांधी की हत्या करने में थोड़ा भी नहीं हिचका और गांधी की न केवल बर्बर तरीके से हत्या किया, बाद में भी उसे जायज भी ठहराया ( गांधी बध क्यों ?) और उस पर गर्व महसूस करता रहा है।

    प्रश्न यह है कि इन तरह की दो दृष्टियों के स्रोत कहां है?

    नाथूराम गोडसे जैसे हिंसक हिंदू होने के स्रोत हिंदू धर्म, हिंदू धर्मग्रंथों और महाकाव्यों में हैं। भारत में जान लेने यानि हत्या को सारे हिंदू धर्मग्रंथ और महाकाव्य जायज ठहराते हैं, जिसमें चारो वेद, 18 पुराण और 18 स्मृतियां, वाल्मीकि रामायण, महाभारत और रामचरित मानस जैसे महाकाव्य और तथाकथित हिंदुओं का सबसे मान्य दार्शनिक ग्रंथ गीता भी शामिल है। यहां तक स्वयं हिंदुओं के सबसे बड़े अराध्य मर्यादा पुरूषोत्तम शंबूक की वर्ण- व्यवस्था का उल्लंघन करने पर (शूद्र) हत्या अपने हाथों से करते हैं।

    अकारण नहीं है कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना में लगे आरएसएस और उसके आनुषांगिक संगठनों के लोगों की हत्या करने, जिंदा जलाने और बलात्कार करने में थोड़ी भी हिचक नहीं होती है और इसे जायज भी ठहराते हैं- जैसे गुजरात नरसंहार (2002), मुजफ्फर नगर दंगे (2013) और दिल्ली में हिंदुओं का तांडव (2020) और मांब लिंचिंग या हाथरस के बलात्कारियों के पक्ष में खड़े होना जाना।

    इसके विपरीत परंपरा बहुजन-श्रमण परंपरा है, जिसका केंद्र बौद्ध धम्म है। गोडसे हिंदू धर्म से प्रोत्साहित और प्रेरित था, जबकि डॉ. आंबेडकर बौद्ध धम्म, उसके मूल्यों के साथ आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों से प्रेरित थे।

    हिंदू धर्म के मूल में हिंसा और हत्या है। उसके सारे धर्मग्रंथ और महाकाव्य इसके प्रमाण हैं, हिंदुओं के सारे ईश्वर और देवी-देवता हथियार बंद हैं। इस परंपरा ने गोडसे को एक हत्यारे में तब्दील कर दिया।

    बौद्ध परंपरा और मूल्यों ने डॉ. आंबेडकर को मानवीय और सहिष्णु बनाया। उन्होंने दलितों के लिए हासिल राजनीतिक उपलब्धियां दांव पर लगाकर भी गांधी की जान बचाई, जबकि हिंदू धर्म और हिंदू राष्ट्र के सपने से ओत-प्रोत गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी।

    हिंदू धर्मग्रंथ हिंसक और अमावनीय बनाते हैं और असमानता (वर्ण-जाति व्यवस्था) के पोषक हैं, इसी तथ्य को ध्यान में रखकर डॉ. आंबेडकर ने लिखा-

    आप को यह भूलना नहीं होगा कि अगर आप इस व्यवस्था को कहीं से भी भंग करना चाहते हैं, तो आप को वेदों और शास्त्रों में डायनामाइट लगा देना होगा, जो तर्कसंगतता की किसी भी भूमिका का निषेध करते हैं; आप को श्रुतियों और स्मृतियों के धर्म को नष्ट कर देना होगा। और कोई भी उपाय काम नहीं करेगा। (आंबेडकर, जाति का विनाश, फारवर्ड प्रेस )

    हिंदू धर्म के और उसके धर्मग्रंथों की अध्यात्महीनता, पाखंडी, हिंसक और हत्यारे चरित्र को तथ्यों-तर्को के साथ डॉ. आंबेडकर ने अपनी किताब ‘हिंदू धर्म की पहेलियां’ ( 1954-55 में लिखी गई) में विस्तार से उजागर किया है।

    बहुजन-श्रमण पंरपरा एक मानवीय परंपरा है और हिंदू धर्म द्वारा पोषित ब्राह्मणवादी परंपरा एक अमानवीय परंपरा है।

  • योगी आदित्यनाथ को है क्षत्रिय होने का गर्व, क्या इसलिए वो दलितों के घर पत्तल में खाते हैं?

    योगी आदित्यनाथ को है क्षत्रिय होने का गर्व, क्या इसलिए वो दलितों के घर पत्तल में खाते हैं?

    हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि उन्हें क्षत्रिय होने पर गर्व है। भगवान भी इसी जाति के थे।

    दरअसल, उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर हिंदुस्तान टाइम्स ने सीएम योगी का एक इंटरव्यू किया है। इस इंटरव्यू के दौरान पत्रकार ने सीएम योगी से पूछा ‘जब आपसे ये कहा जाता है कि आप सिर्फ राजपूतों की राजनीति करते हैं, तो क्या आपको दुख होता है?

    इसके जवाब में योगी आदित्यनाथ ने कहा- मुझे कोई दुख नहीं होता। क्षत्रिय जाति में पैदा होना कोई अपराध नहीं है। मुझे क्षत्रिय होने पर गर्व है। इस जाति में भगवान ने बार-बार जन्म लिया है। अपनी जाति पर स्वाभिमान हर व्यक्ति को होना चाहिए।

    सवाल : आप सिर्फ राजपूत की राजनीति करते हैं, आपको दुख नहीं होता ?
    योगी : कोई दुख नहीं होता ..राजपूतों में पैदा हुआ…!

    जब यूपी में ब्राह्मणों का एक बड़ा वर्ग अजय सिंह बिष्ट यानि योगीजी से नाराज हो तब चुनावों के बीचोंबीच ये क्या कह गये मुख्यमंत्री !

    सुना है चाणक्य बेहद नाराज है । PIC.TWITTER.COM/YVMQVFRW8Z

    — DEEPAK SHARMA (@DEEPAKSEDITOR) JANUARY 29, 2022

    इस बयान के बाद के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को योगी आदित्यनाथ की जगह अजय सिंह बिष्ट कहना भी अनुचित नहीं है। क्योंकि सिर्फ भगवा चोला पहनने से कोई संत नहीं हो जाता। संत जाति में विश्वास तक नहीं करते लेकिन आदित्यनाथ तो अपनी पर जाति गर्व कर रहे हैं। ऐसे में इन्हें अजय सिंह बिष्ट कहना ज्यादा उचित होगा।

    एक संवैधानिक पद पर होने के बावजूद अपनी जाति पर गर्व का खुलेआम इजहार बताता है कि अजय सिंह बिष्ट जातिवादी मानसिकता के हैं। अगर अजय सिंह बिष्ट को अपनी जाति पर गर्व है तो जाहिर है कि अपनी जाति के लिए सॉफ्ट कॉर्नर भी रखते होंगे। उन्हें अधिक फायदा पहुंचाते होंगे, मुश्किलों से बचाते होंगे। तो क्या ये जातिवाद नहीं है?

    बहुत साधारण सा फॉर्मूला है कि अगर किसी समांती जाति में पैदा हुए व्यक्ति को अपनी जाति पर गर्व है तो वो निश्चित ही जातिवादी है।

    अजय सिंह बिष्ट को अपनी जाति पर गर्व है। यानी उन्हें वर्ण व्यवस्था में विश्वास है। अगर वर्ण व्यवस्था में यकीन है तो जाहिर है वो दलितों को नीच, गंदा, अशुद्ध और अछूत समझते होंगे। जानवरों से भी बदतर समझते होंगे। तो क्या यही वजह है कि जब वो अपने पसंद के भाजपायी दलित के घर भी खाना खाने जाते हैं तो उनके बर्तन में ना खाकर पत्तल में खाते हैं।

    अगर अजय सिंह बिष्ट को केवल राजपूतों की राजनीति के आरोप पर कोई दुख नहीं है, तो क्या इसका मतलब ये नहीं समझा जाना चाहिए कि विपक्षी दलों के ठाकुरवाद के आरोप सही हैं? उत्तर प्रदेश में ठाकुरवाद एक सच्चाई है?

    वैसे बता दें कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जिस नाथ परम्परा से आते हैं उसमें जाति व्यवस्था, वर्णाश्रम व्यवस्था और ऊंच-नीच निषेध है। कभी नाथपंथियों में वर्णाश्रम व्यवस्था से विद्रोह करने वाले सबसे अधिक लोग हुआ करते थे। यही वजह है कि गोरखनाथ का प्रभाव कबीर, दादू, जायसी और मुल्ला दाऊद जैसे अस्पृश्य और गैर-हिन्दू कवियों पर भी माना जाता है।

    लेकिन नाथपंथ के वर्तमान अगुआ ‘योगी आदित्यनाथ’ अपनी जाति की जड़ को छोड़ नहीं पाए हैं। जाति पर गर्व करने वाला उनका बयान बतात है कि वो योगी आदित्यनाथ के खोल में अजय सिंह बिष्ट हैं। जाति के इसी जंजाल की तरफ उत्तर प्रदेश में उच्च पदों पर हुई नियुक्तियां भी इशारा करती हैं।

    यूपी में 26% डीएम योगी आदित्यनाथ की जाति के यानी ठाकुर हैं। यूपी में कुल 75 जिले हैं, इनमें से 61 ज़िलों में एसपी और डीएम में से एक पद पर ठाकुर या ब्राह्मण हैं। कई जगहों पर दोनों पदों पर इन्हीं जातियों से अफ़सर हैं। यूपी के कुल जिलाधिकारियों में से 40% सवर्ण हैं। 26% ठाकुरों के बाद सबसे ज्यादा संख्या ब्राह्मण जिलाधिकारियों (11%) की है। SSP/SP की बात करें तो 75 में से 18 जिलों की कमान ठाकुरों के पास हैं और 18 ब्राह्मणों के पास।

  • SBI ने गर्भवती महिलाओं के काम पर लगायी रोक! स्वाति बोलीं- इस महिला विरोधी नियम को वापस ले बैंक

    SBI ने गर्भवती महिलाओं के काम पर लगायी रोक! स्वाति बोलीं- इस महिला विरोधी नियम को वापस ले बैंक

    भारतीय स्टेट बैंक ने 28 जनवरी को एक दिशानिर्देश जारी किया है। इस दिशानिर्देश के अनुसार तीन महीने से अधिक गर्भवती महिला कर्मियों को ‘अस्थायी रूप से अयोग्य’ माना जाएगा। ऐसी महिला डिलवरी होने के बाद 4 महीने के भीतर बैंक में काम करने के लिए शामिल हो सकती है।

    एसबीआई ने नई भर्तियों या पदोन्नत लोगों के लिए अपने नवीनतम मेडिकल फिटनेस दिशानिर्देशों में कहा कि जो महिला तीन महीने से कम गर्भवती होगी वो महिला उम्मीदवारों के लिए फिट मानी जाएगी ।

    बता दें कि इससे पहले छह महीने की गर्भवती महिलाओं को भी बैंक में कई शर्तों के साथ काम करने की अनुमति थी। कर्मी को एक स्त्री रोग विशेषज्ञ का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना आवश्यक होता था, जिसमें इस बात पुष्ट होती हो कि उस दौरान बैंक में नौकरी करने से महिला के गर्भावस्था या भ्रूण के सामान्य विकास में कोई परेशानी नहीं होगी। ना ही उसका गर्भपात होगा ।

    इस नियम पर नाराजगी जताते हुए दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख स्वाति मालिवाल ने ट्वीट करते हुए लिखा कि ऐसा लगता है कि भारतीय स्टेट बैंक ने 3 महीने से अधिक गर्भवती महिलाओं को सेवा में शामिल होने से रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं और उन्हें ‘अस्थायी रूप से अयोग्य’ करार दिया है। यह भेदभावपूर्ण और अवैध दोनों है।क्योंकि यह कानून के तहत प्रदान किए जाने वाले मातृत्व लाभों को प्रभावित कर सकती है। ​हमने उन्हें नोटिस जारी कर इस महिला विरोधी नियम को वापस लेने की मांग की है।

    स्वाति मालीवाल द्वारा ट्वीट किए गए नोटिस में, दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) ने कहा है कि एसबीआई ने 31 दिसंबर को एक सर्कुलर में उन महिलाओं को काम में शामिल होने से रोक दिया है, जो नियत प्रक्रिया के माध्यम से चुने जाने के बावजूद तीन महीने से अधिक की गर्भवती हैं।

    भारतीय स्टेट बैंक ने अभी इस मामले पर कोई जवाब नहीं दिया है।डीसीडब्ल्यू ने एसबीआई को नोटिस का जवाब मंगलवार तक देने को कहा है।

  • योगी ने राजपूत होने पर किया गर्व, सपा बोली-घोर जतिवादी हैं योगी, अब यूपी में ये नहीं चलेगा

    योगी ने राजपूत होने पर किया गर्व, सपा बोली-घोर जतिवादी हैं योगी, अब यूपी में ये नहीं चलेगा

    उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जुड़ी एक खबर को साझा करते हुए समाजवादी पार्टी ने लिखा है, हमने आज तक बस यही सुना था कि योगी, संत, महात्मा की कोई जाति नहीं होती, वो सबको एक नजर से देखता है, लेकिन यूपी के घोर जातिवादी सीएम अदित्यनाथ जी ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में अपने जातिवादी रवैये को स्वीकार किया और उस पर गर्व भी किया, ये जातिवाद अब और नहीं चलेगा अदित्यनाथ जी!

    हमने आज तक बस यही सुना था कि योगी ,संत ,महात्मा की कोई जाति नहीं होती ,वो सबको एक नजर से देखता है ,

    लेकिन यूपी के घोर जातिवादी सीएम अदित्यनाथ जी ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में अपने जातिवादी रवैये को स्वीकार किया और उस पर गर्व भी किया ,

    ये जातिवाद अब और नहीं चलेगा अदित्यनाथ जी! PIC.TWITTER.COM/P6IIU4OA0M

    — SAMAJWADIPARTYMEDIA (@MEDIACELLSP) JANUARY 29, 2022

    दरअसल, उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर हिंदुस्तान टाइम्स ने सीएम योगी का एक इंटरव्यू किया है। इस इंटरव्यू के दौरान पत्रकार ने सीएम योगी से पूछा ‘जब आपसे ये कहा जाता है कि आप सिर्फ राजपूतों की राजनीति करते हैं, तो क्या आपको दुख होता है?

    इसके जवाब में योगी आदित्यनाथ ने कहा- मुझे कोई दुख नहीं होता। क्षत्रिय जाति में पैदा होना कोई अपराध नहीं है। मुझे क्षत्रिय होने पर गर्व है। इस जाति में भगवान ने बार-बार जन्म लिया है। अपनी जाति पर स्वाभिमान हर व्यक्ति को होना चाहिए।

    सवाल : आप सिर्फ राजपूत की राजनीति करते हैं, आपको दुख नहीं होता ?
    योगी : कोई दुख नहीं होता ..राजपूतों में पैदा हुआ…!

    जब यूपी में ब्राह्मणों का एक बड़ा वर्ग अजय सिंह बिष्ट यानि योगीजी से नाराज हो तब चुनावों के बीचोंबीच ये क्या कह गये मुख्यमंत्री !

    सुना है चाणक्य बेहद नाराज है । PIC.TWITTER.COM/YVMQVFRW8Z

    — DEEPAK SHARMA (@DEEPAKSEDITOR) JANUARY 29, 2022

    बता दें कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जिस नाथ परम्परा से आते हैं उसमें जाति व्यवस्था, वर्णाश्रम व्यवस्था और ऊंच-नीच निषेध है। कभी नाथपंथियों में वर्णाश्रम व्यवस्था से विद्रोह करने वाले सबसे अधिक लोग हुआ करते थे। यही वजह है कि गोरखनाथ का प्रभाव कबीर, दादू, जायसी और मुल्ला दाऊद जैसे अस्पृश्य और गैर-हिन्दू कवियों पर भी माना जाता है।

    लेकिन नाथपंथ के वर्तमान अगुआ ‘योगी आदित्यनाथ’ अपनी जाति की जड़ को छोड़ नहीं पाए हैं। जाति पर गर्व करने वाला उनका बयान बतात है कि वो योगी आदित्यनाथ के खोल में अजय सिंह बिष्ट हैं। जाति के इसी जंजाल की तरफ उत्तर प्रदेश में उच्च पदों पर हुई नियुक्तियां भी इशारा करती हैं।

    यूपी में 26% डीएम योगी आदित्यनाथ की जाति के यानी ठाकुर हैं। यूपी में कुल 75 जिले हैं, इनमें से 61 ज़िलों में एसपी और डीएम में से एक पद पर ठाकुर या ब्राह्मण हैं। कई जगहों पर दोनों पदों पर इन्हीं जातियों से अफ़सर हैं। यूपी के कुल जिलाधिकारियों में से 40% सवर्ण हैं। 26% ठाकुरों के बाद सबसे ज्यादा संख्या ब्राह्मण जिलाधिकारियों (11%) की है। SSP/SP की बात करें तो 75 में से 18 जिलों की कमान ठाकुरों के पास हैं और 18 ब्राह्मणों के पास।