आप अपनी मर्ज़ी से अपने आधार कार्ड को वोटर आईडी से जोड़ सकते है, लेकिन ऐसा नहीं करने पर वोटर लिस्ट से नाम नहीं काटा जाएगा। यह भरोसा सदन के भीतर एक लिखित जवाब में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने दिया।
मंत्रीजी के इस भरोसे के आने तक देश के 54,32,84760 करोड़ मतदातओं ने अपने आधार नंबर चुनाव आयोग को सौंप दिये हैं।
चुनाव आयोग ने आधार को वोटर कार्ड से लिंक कराने के लिए 1 अगस्त से स्वैच्छिक अभियान शुरू किया। इस अभियान को लेकर आरटीआई के माध्यम से जानकारी चुनाव आयोग ने इंडियन एक्सप्रेस को उपलब्ध कराई है।
जिसके मुताबिक 1 अगस्त से शुरू हुए स्वैच्छिक अभियान में 12 दिसंबर तक पंजीकृत मतदाताओं से 54.32 करोड़ आधार नंबर एकत्र किए थे, हालांकि आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने की प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हुई है।
17 जून को कानून मंत्रालय ने 1 अप्रैल 2023 की तिथि को आधार से मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने की अंतिम तिथि के रूप में अधिसूचित किया था।
आरटीआई में पूछे गए सवाल कि मतदाता पहचान पत्र से कितने आधार नंबर लिंक किए गए हैं, चुनाव आयोग ने जवाब में कहा कि “मतदाता सूची/ईपीआईसी डेटाबेस को आधार डेटाबेस से जोड़ने की प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं की गई है।
दिनांक 01/08/2022 से दिनांक 12/12/2022 तक मौजूदा मतदाताओं से प्राप्त ‘फॉर्म 6बी’ की कुल संख्या 54,32,84760 है.”
इस सवाल के जवाब में कि कितनी एंट्री हटाई गईं या डुप्लीकेट या धोखाधड़ी के मामलों का पता चला? चुनाव आयोग ने जवाब दिया, ‘जैसा कि ऊपर बताया गया है कि कोई भी आधार लिंकिंग शुरू नहीं हुई है, इसलिए अब तक आधार लिंकिंग के आधार पर ऐसी किसी भी एंट्री की पहचान नहीं की गई है।
’आरटीआई के जवाब में यह भी बताया गया है कि चुनाव आयोग ने 4 जुलाई को राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश दिया था कि 1 अगस्त से ‘फॉर्म 6बी में स्वैच्छिक आधार पर मौजूदा मतदाताओं की आधार संख्या के इक्ट्टठा करने के लिए कार्यक्रम’ चलाया जाए।
हालांकि चुनाव आयोग के प्रवक्ता ने इस पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया कि लिंकिंग का काम अब तक शुरू क्यों नहीं हुआ है, अगर यह 1 अप्रैल 2023 के बाद शुरू होगा तो अब तक एकत्र किए गए डेटा को चुनाव आयोग द्वारा कैसे संग्रहीत किया जा रहा है।
इस बीच, लोकसभा में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने लिखित जवाब में बताया था कि आधार नंबर को ‘आधार डेटा वॉल्ट’ में संग्रहीत किया गया है, जो कि आधार अधिनियम-2016 पर आधारित है.चुनाव आयोग ने इससे पहले मार्च 2015 में आधार संख्या एकत्र करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया था।
लेकिन उस साल अगस्त में इसे निलंबित कर दिया गया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जिन नागरिकों ने अपना आधार प्रस्तुत नहीं किया है, उन्हें उन लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता है जिन पर उनका अधिकार है।
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