
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि जमीन पर मिशन का काम नहीं दिख रहा. मिशन का काम आंखो को धोखा देने वाला है. यह मिशन सिर्फ पैसा बांटने की मशीन बनकर रह गया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण के मामले में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन(एनएमसीजी-नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा) पर गंभीर टिप्पणी की है.
कोर्ट ने कहा मिशन द्वारा दिए जा रहे पैसे से गंगा की सफाई हो रही है या नहीं, इसकी कोई निगरानी नहीं हो रही. न ही जमीनी स्तर पर कोई काम हो रहा.
कोर्ट को प्रयागराज नगर निगम की ओर से बताया गया कि नालों की सफाई में प्रतिमाह 44 लाख रुपए खर्च हो रहे. इस पर कोर्ट ने हैरानी जताई. कहा कि साल भर में करोड़ों खर्च हो रहे फिर स्थिति वैसी ही है.
यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि उसको अब तक 332 शिकायतें मिली हैं. 48 में सजा हो चुकी है. कोर्ट ने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हलफनामे में पाया कि उसके पिछले आदेश के बाद कार्यवाई शुरू हुई.
प्रयागराज में करोड़ों खर्च करने के बाद भी गंगा मैली है. मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की अगुवाई वाली खंडपीठ ने सोमवार को सुनवाई के दौरान मिशन की ओर से बांटे गए बजट का ब्योरा जाना. पूछा कि गंगा सफाई के लिए खर्च किए गए करोड़ों रुपए के बजट से काम हुआ या नहीं तो कोर्ट को कोई जवाब में मिला.
कोर्ट ने पूछा कि इतनी बड़ी परियोजना के लिए पर्यावरण इंजीनियर हैं या नहीं. इस पर जवाब दिया गया कि नाम में काम कर रहे सारे अधिकारी पर्यावरण इंजीनियर ही हैं.
इस पर कोर्ट ने पूछा कि परियोजनाओं की निगरानी कैसे करते हैं तो इस पर कोई जवाब नहीं आया.