इतिहासकार व आशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. अब उनके समर्थन में देश के तमाम पत्रकार, विपक्षी पार्टियों व वकील करते दिख रहे है. देश के तमाम बुद्धिजीवियों ने उनकी गिरफ्तारी को बेहद चिंताजनक और इसे लोकतंत्र के खिलाफ बताया है.
क्या है पूरा मामला
आपको बता दें कि प्रो. अली खान महमूदाबाद ने 8 मई 2025 सोशल मीडिया पर पोस्ट ऑपरेशन सिंदूर और महिला सैन्य अधिकारियों की प्रेस ब्रीफिंग पर एक टिप्पणी की थी. जिसके लिए 18 मई 2025 को हरियाणा पुलिस ने उन्हें कर लिया था. प्रो. खान के खिलाफ बीएनएस की धारा 152 (राष्ट्र की संप्रभुता को खतरा), धारा 196(1) (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), धारा 197(1) (देश की संप्रभुता को खतरे में डालने वाली झूठी जानकारी प्रकाशित करना) और धारा 299 (किसी धर्म को अपमानित करना) जैसी धाराओं के तरह मुकदमा दर्ज किया गया है. उन्हें कोर्ट ने 2 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया है. उनकी पोस्ट पर हरियाणा राज्य महिला आयोग ने उनके खिलाफ नोटिस भेजा था. वहीं जठेड़ी गांव के सरपंच एवं भाजपा युवा मोर्चा के सदस्य योगेश जठेड़ी ने राई थाने में ने दर्ज कराई थी. जिसके बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था.
प्रो. खान अली खान महमूदाबाद का परिचय
प्रो. अली खान महमूदाबाद एक भारतीय प्रोफेसर, लेखक और राजनीतिक टिप्पणीकार हैं. उनकी हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में अच्छी पकड़ है. वे हरियाणा के सोनीपत में अशोका यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान और इतिहास पढ़ाते हैं. उनका जन्म 2 दिसंबर 1982 को लखनऊ में हुआ था और पो. खान का ताल्लुक उत्तर प्रदेश के महमूदाबाद के शाही परिवार से हैं. उन्होंने लखनऊ के ला मार्टिनियर कॉलेज, इंग्लैंड के किंग्स कॉलेज और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. प्रो. खान काफी रसूखदार परिवार से संबंध रखते है. पहले वे समाजवादी पार्टी के करीबी थे और अखिलेश यादव के साथ काम कर चुके हैं. उनके पिता राजनेता थे व दो बार कांग्रेस पार्टी से विधायक भी रह चुके हैं.
सोशल मीडिया पोस्ट में क्या लिखा था?
प्रो. खान अपनी पोस्ट की शुरुआत में लिखा कि ऑपरेशन सिंदूर ने भारत-पाक संबंधों की सभी पुरानी धारणाओं को पलट दिया है क्योंकि अब आतंकवादी हमलों की प्रतिक्रिया सैन्य कार्रवाई से होगी और दोनों के बीच किसी भी प्रकार की भाषाई भिन्नता समाप्त हो गई है. इस बदलाव के बावजूद भारतीय सशस्त्र बलों ने यह ध्यान रखा है कि किसी भी सैन्य या नागरिक ढांचे को निशाना न बनाया जाए ताकि अनावश्यक टकराव न हो. संदेश स्पष्ट है अगर आप अपने आतंकवाद की समस्या का समाधान नहीं करेंगे, तो हम करेंगे! नागरिकों की जान का नुकसान दोनों पक्षों के लिए दुखद है और यही मुख्य कारण है कि युद्ध से बचा जाना चाहिए.
उन्होंने उन लोगों के बारे में भी लिखा जो लगातार युद्ध की वकालत कर रहे हैं. उनके लोगों को लेकर प्रो. खान ने लिखा कि ऐसे लोग हैं जो बिना सोचे-समझे युद्ध की वकालत कर रहे हैं लेकिन उन्होंने न तो कभी युद्ध देखा है और न ही किसी संघर्ष क्षेत्र में कदम रखा है. एक नकली सिविल डिफेंस ड्रिल में भाग लेने से कोई सैनिक नहीं बनता और न ही आप कभी उन लोगों का दर्द समझ सकते हैं जिन्होंने संघर्ष में अपनों को खोया है. युद्ध क्रूर होता है. गरीब सबसे ज़्यादा पीड़ित होते हैं. युद्ध का राजनेताओं और रक्षा कंपनियों को होता है.
फिर उन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी लेकर लिखा कि मुझे यह देखकर खुशी हुई कि इतने सारे दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफिया कुरैशी की सराहना कर रहे हैं. लेकिन शायद उन्हें उतनी ही जोर से यह भी मांग करनी चाहिए कि भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार दिए गए लोगों, मनमाने ढंग से घरों को गिराए जाने और भाजपा की घृणा की राजनीति के शिकार लोगों को भी भारतीय नागरिक के रूप में संरक्षित किया जाए. दो महिला सैनिकों द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना महत्वपूर्ण है, लेकिन केवल दिखावे से ज़मीन पर सच्चाई नहीं बदलती तो अन्यथा यह सिर्फ पाखंड है.
अंत में उन्होंने लिखा कि महिला सैन्यकर्मियों की प्रेस कांफ्रेंस मात्र दिखावा थी. आम मुसलमानों की जमीनी सच्चाई अलग है उस छवि से जो सरकार दिखाने की कोशिश करती है. लेकिन साथ ही यह प्रेस कॉन्फ्रेंस यह भी दिखाती है कि एक भारत, जो अपनी विविधता में एकजुट है, वह विचार पूरी तरह मरा नहीं है.
बाद में दी थी सफाई
उनकी इस पोस्ट में ऐसा कुछ भी नहीं प्रतीत प्रो.खान ने देश के खिलाफ कुछ गलत लिखा है. बाद में प्रो. खान इस पोस्ट पर अपनी सफाई देते हुए कहा था कि उनकी टिप्पड़ी को गलत तरीके से पड़ा और समझा गया.
देश के तमाम नेता और पत्रकारों ने दिया समर्थन
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने लिखा, “प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी या दिखती है कि भाजपा किसी भी ऐसी राय से कितना डरती है जो उन्हें पसंद नहीं है. कांग्रेस हमारे सशस्त्र बलों, नौकरशाहों, शिक्षाविदों, बुद्ध जीवियों और उनके परिवारों के साथ खड़ी है.”
प्रो.खान की गिरफ्तार पत्रकार नरेन्द्र मिश्रा ने सरकार पर तंज कसते हुए लिखा, “एक संतुलित,एकता का संदेश देने पोस्ट के लिए अशोक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को अरेस्ट कर लिया जाता है. वहीं जो सोशल मीडिया अकाउंट से महिला सेना अधिकारी को ट्रेाल किया गया, पूरी भीड़ ठेली गयी उसके खिलाफ कोई नाममात्र के लिए भी एक्शन नहीं. ऐसे नहीं चलता है तंत्र, न ये बहुत अच्छी स्थिति है.”
द रेड माइक के फाउंडर और पत्रकार सौरभ शुक्ला ने अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी पर लिखा, “ख़ान और शाह फ़र्क़ तो है शायद Ali Khan Mahmudabad ने मुसलमानों की हालत पर जो अंत में लिखा था तो वो बात उनकी गिरफ़्तारी ने सच साबित कर दी है.”
पत्रकार विनोद शर्मा ने प्रोफेसर की गिरफ्तारी पर तंज कसते हुए लिखा, “हरियाणा सरकार और वहाँ के महिला आयोग को रैपिडैक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स करवाया जाए. अशोका यूनिवर्सिटी की प्रसिद्ध परलोका हो रही है प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी के चलते.”
प्रो.खान की गिरफ्तारी पर तृणमूल कांग्रेस सांसद ने कहा, “भारत के सबसे प्रतिष्ठित विद्वानों में से एक हैं, जिन्हें वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है. अगर उन्हें मिकी माउस के आरोप में गिरफ्तार किया गया और जेल भेजा गया तो यह केवल उनके नाम की वजह से है. प्रतिष्ठित विद्वान और शिक्षाविद प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी से भयभीत – क्या यह कट्टर सरकार और हरियाणा पुलिस पूरी तरह से पागल हो गई है? हम जल्द से जल्द अदालत जा रहे हैं.”
उन्होंने एक अन्य पोस्ट में लिखा, “अशोका यूनिवर्सिटी के पीछे अमीर लड़कों के झुंड पर दया आती है, उन्हें यह एहसास नहीं है कि लिबरल आर्ट यूनिवर्सिटी बनाने के लिए सिर्फ पैसे से कहीं अधिक की ज़रूरत होती है. उन्हीं मूल्यों और आजादी के लिए खड़े होने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है, जिनके लिए अली खान महमूदाबाद को जेल भेजा जा रहा है. उसके लिए न लड़ने के लिए आपको शर्म आनी चाहिए!”
वरिष्ठ पत्रकार सुहासिनी है हैदन ने प्रो.महमूजाबाद की गिरफ्तारी की आलोचना करते हुए लिखा, “प्रोफेसर खान का सोशल मीडिया पोस्ट भेदभाव के बारे में है, और जबकि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है, वहीं एक मंत्री हैं जिन्होंने इसी मुद्दे पर एक सार्वजनिक रैली में सांप्रदायिक गाली का इस्तेमाल किया था, जो खुलेआम घूम रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने प्रो.खान का समर्थन करने हुए लिखा, “यह बहुत ही आश्चर्यजनक है कि प्रोफेसर महमूदाबाद को इस पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया! मैं इससे असहमत नहीं हो सकता!”
कांग्रेस नेत्री सुप्रिया श्रीनेत प्रोफेसर अली खान की गिरफ्तारी पर पीएम मोदी की आलोचना की है. ट्विटर पर एक लंबी पोस्ट लिखकर प्रो.खान गिरफ्तारी गैर जरूरी बताया. उन्होंने लिखा, “ नरेंद्र मोदी ने एक ऐसी जाहिलों की भीड़ बनायी है- जिसको सोचने समझने और तर्कसंगत बात कहने से दिक्कत है. मोदी जी के न्यू इंडिया में BJP के उपमुख्यमंत्री के सेना के नतमस्तक होने और एक मंत्री द्वारा कर्नल सोफिया कुरैशी के ख़िलाफ़ बेहद आपत्तिजनक बात कहे जाने पर कोई एक्शन नहीं लिया जाएगा, कोई गिरफ्तारी नहीं, कोई बर्खास्तगी नहीं. यह असल में सिर्फ़ एक आदमी के ख़िलाफ़ एक्शन की बात नहीं है. यह उस तंत्र की बात है जहाँ बोलने, लिखने, सवाल करने वालों को डराया जाता है. जहाँ असहमति को अपराध बनाया जाता है, जहां सरकार को आईना दिखाना देशद्रोह कहलाता है और जहाँ राजा की बात में हाँ में हाँ मिलाने वालों के 100 ख़ून माफ़ हैं.”
उन्होने प्रधानमंत्री की आलोचना करता हुए लिखा, “यह देश भी तो कुछ सवाल पूछ रहा है. जवाब देना पड़ेगा और कब तक नाम और धर्म देखकर कार्यवाही कीजिएगा? वास्तव में, इस देश का प्रधानमंत्री कायर है.”
एक काश नाम के ट्विटर यूजर ने लिखा, “कर्नल सोफिया कुरैशी को “आतंकवादियों कि बहन” बताने वाले एमपी के मंत्री विजय शाह पर सुप्रीम कोर्ट जाने पर भी इस्तीफा नहीं. पर अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान का ऑपरेशन सिंदूर पर विश्लेषक टिप्पणी लिखने पर जेल. बाकि सब ठीक है. मंत्री विजय शाह के मामले में कोर्ट ने SIT गठित कर जांच के आदेश दिए है. बाकि आप जांच का मतलब जानते हैं. जांच जिसमें ना आए किसी को आज आँच!”