14 में 2025 को जस्टिस बीआर गवई ने देश के 51 वें मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली. मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद सीजेआई गवई पहली बार महाराष्ट्र पहुंचे. CJI बीआर गवई के स्वागत में महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल की तरफ से एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया था. लेकिन उनकी अगवानी करने राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, पुलिस आयुक्त में से कोई नहीं पहुंचा. जिसको लेकर सीजेआई ने नाराजगी व्यक्त की. जिसको लोगों ने CJI गवई का अपमान बताया.
दरअसल जब भी किसी राज्य में चीफ जस्टिस जाते हैं तो वहां के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और पुलिस आयुक्त उनके स्वागत में मौजूद रहते हैं. ये एक प्रोटोकॉल का हिस्सा माना जाता है. उसके लिए अनुच्छेद 142 का उपयोग भी किया जा सकता हैं. आपको बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को अपने समक्ष किसी मामले को जरूरी समझे जाने पक आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है. इसमें कोर्ट अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का आदेश दे सकता है.
सीजेआई गवई ने अधिकारियों की अनुपस्थिति पर नाराजगी व्यक्त की. उन्होंने कहा, “कोई व्यक्ति उन्हीं के राज्य का है, मुख्य न्यायाधीश पहली बार बनकर उनके राज्य में आया है. अगर राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी या पुलिस आयुक्त नहीं आना चाहते तो उन्हें खुद सोचना चाहिए कि यह सही है या गलत.“
उन्होंने आगे कहा अगर मेरी जगह कोई और होता तो शायद संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग भी कर सकता था. वह प्रोटोकॉल के पालन पर जोर नहीं दे रहे हैं बस सम्मान की बात है.
सीजेआई के महाराष्ट्र दौरे पर प्रोटोकॉल का पालन करने पर लोगों और पत्रकारों ने भी सवाल उठाए. सोशल मीडिया पर लोगों ने नाराजगी व्यक्त करते हुए लिखा कि जस्टिस दलित समुदाय से आते हैं शायद इसलिए भी उनके स्वागत में अधिकारी नहीं पहुंचे.
पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता डॉ. उदित राज ने इस पूरे मामले पर अपनी नाराजगी जाहिर की. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा, ”मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई जी को महाराष्ट्र- गोवा बार काउंसिल ने अभिनंदन के लिए आमंत्रित किया और यह उनका CJI बनने के बाद पहला दौरा है.प्रोटोकॉल के अनुसार चीफ सेक्रेटरी, डीजी पुलिस को रहना चाहिए लेकिन क्यों नहीं ऐसा? संविधान के तीन अंग हैं कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका. गवई जी न्यायपालिका के हेड हैं। महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार है और उनकी मनुवादी मानसिकता के कारण ऐसा हुआ.“
इसी मामले पर पत्रकार प्रभाकर कुमार मिश्रा ने, “ CJI जस्टिस गवई कल अपने होम स्टेट महाराष्ट्र गए थे. बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा ने उनके CJI बनने पर स्वागत में कार्यक्रम रखा था. राज्य के मुख्य सचिव, डीजीपी या मुंबई पुलिस कमिश्नर, इन तीनों में से कोई भी CJI को रिसीव करने के लिए मौजूद नहीं था. उन्होंने इस पर नाराज़गी जताई। CJI ने कहा कि कि उनको खुद सोचना चाहिए कि ये सही है या गलत!“
उन्होंने आगे कहा कि सांसदों और मंत्रियों के स्वागत में बिछे रहने वाले अधिकारी देश के मुख्य न्यायाधीश के स्वागत प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे तो CJI की नाराज़गी तो बनती है!
धर्मेश दीक्षित नाम के एक ट्विटर यूजर ने लिखा, “सोचो अगर CJI गवई नागपुर में ‘HEADQUARTER’ में भेंट के लिए महाराष्ट्र पहुँचते, तो क्या ऐसा ही फीका-स्वागत होता? क्या अधिकारी, क्या मंत्री, क्या मीडिया. सब पलक-पांवड़े बिछाकर स्वागत नहीं करते?“
वहीं एक अन्य Bhikkhu Asanga Vajra नाम के ट्विटर यूजर ने सीजेआई के स्वागत में अधिकारियों के न पहुंचते पर जातिवाद और शर्मनाक बताते है हुए लिखा, “इसे आप जातिवाद कहेंगे या नहीं, भारत के इतिहास में पहली बार किसी भारत के मुख्य न्यायाधीश का प्रोटोकॉल टूटा है, क्या उनकी जाति की वज़ह से अपमान हुआ है. जब भी चीफ़ जस्टिस किसी राज्य में जाते हैं तो वहां के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, पुलिस आयुक्त मौजूद रहते हैं, महाराष्ट्र सरकार ने उनका प्रोटोकॉल तोड़कर साबित किया कि सरकार में मनुवादी ब्यूरोक्रेसी हावी है, यह शर्मनाक है जब इतने बड़े व्यक्ति के साथ जातिवाद हो सकता है तो बाकी को क्या ही कहा जाए”