कैश कांड में घिरे इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ सोमवार को संसद महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो गई है. 14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के बंगले में आग लगने के बाद जले नोट मिले थे. मीडिया में जले नोट की खबर आने के बाद पूरे देश में काफी हंगामा हुआ था.

मामले को तूल पकड़ता देश सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाई कोर्ट स्थानांतरण कर दिया था. तत्कालीन CJI जस्टिस संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय आंतरिक जांच पैनल का गठन किया था.

28 मार्च को जस्टिस वर्मा के स्थानांतरण को अधिसूचित किए जाने के बाद उनसे न्यायिक कार्य छीन लिए गए थे. उनके खिलाफ बनी आंतरिक जांच समिति CJI को 64 पन्ने की की रिपोर्ट सौंपी गई थी जिसमें उनके खिलाफ सबूत पाए गए थे.

इस रिपोर्ट के आने के बाद CJI खन्ना ने रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की सिफारिश की थी.

सोमवार से शुरू हुए संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन लोकसभा में लाए गए जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर लोकसभा के 145 सांसदों ने हस्ताक्षर किए. वहीं राज्यसभा में 63 सांसदों जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन किया. जिसके बाद आधिकारिक रूप से जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की कार्रवाई शुरू हो गई.  संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत दायर इस महाभियोग प्रस्ताव को कांग्रेस, बीजेपी, टीडीपी समेत विभिन्न दलों के सांसदो ने में अपना समर्थन दिया.

संसद में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित होने पर मुख्य न्यायाधीश, हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस, और एक सदस्य को लेकर एक कमेटी बनाई जाएगी. इस इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर स्पीकर जस्टिस वर्मा को बर्खास्त करने का फैसला ले सकते हैं.

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