लोकसभा चुनाव के तारीखों का ऐलान हो चुका है। बीजेपी अपना कार्यकाल खत्म कर फिर एक बार नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाकर चुनाव लड़ रही है। मोदी चुनावी रैलियों में अपने कार्यकाल का हिसाब देने के बजाए विपक्षी दलों से हिसाब मांग रहे हैं। धर्म, राष्ट्रवाद, सेना का जमकर इस्तेमाल हो रहा है।
रोजगार, महिला सुरक्षा, पर्यावरण… आदि जैसे जनकल्याणकारी मुद्दें चुनाव से गायब हैं। हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने के वादे पर बात नहीं हो रही है, गंगा सफाई पर बात नहीं हो रही है, आदर्श ग्राम योजना पर बात नहीं हो रही है, 100 स्मार्ट सीटी कहां बनी हैं ये नहीं पूछा जा रहा है…
कितना कुछ है पूछने को लेकिन सत्ता की गोदी में बैठी मीडिया बीजेपी का अजेंडा चलाने में व्यस्त है। बीजेपी की तरह विपक्ष पर हमला करने में व्यस्त है। कोई ऐसा दिन नहीं बीत रहा जब न्यूज चैनल बीजेपी द्वारा उछाले मुद्दे पर बहस न करते हो। ऐसा लगता है मानो न्यूज चैनल हर रोज बीजेपी की तरफ से टॉपिक मिलने का इंतजार करते हो। रोज वही खोखले मुद्दे जिससे आम जनता के जीवन में कोई लाभ नहीं मिलने वाला।
जनविरोधी बन चुकी मीडिया में आज भी बीजेपी के दिए टॉपिक पर ही बहस हो रही है। दरअसल आज अचानक समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में फैसले की कॉपी सार्वजनिक हुई। फैसले की कॉपी में बीजेपी को अपने असफलता छिपाने का मौका दिखा। बीजेपी ने लपक लिया। अरुण जेटली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस पर हमला बोला, कहा- इस केस में आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं था। सिर्फ हिंदू समाज को कलंकित किया गया. इसकी जिम्मेदार कांग्रेस और यूपीए है।
अब बीजेपी ने मामले को उछाला तो इसे गोदी मीडिया द्वारा लपकना लाजमी था, सो लपक लिया। हिंदी न्यूज चैनल आजतक, जी न्यूज, न्यूज18 तीनों पर एक घंटे आगे पीछे इसी मुद्दें पर बहस हुई।
आज-तक के शो ‘दंगल’ का टॉपिक था ‘हिंदू आतंवाद से दाग धुलेंगे’
सत्ताधारी दल के एक आरोप को मुद्दा बनाकर विपक्ष के खिलाफ मेनस्ट्रीम मीडिया की ये मुहीम पत्रकारिता के पतन का सबूत है। विपक्ष के आरोपों को गायब कर देने वाली मीडिया अब हर रोज सत्ताधरी बीजेपी के आरोप पर बहस करती है। हर रोज की बहस में आरोप सत्ताधारी दल का होता है और जवाब विपक्ष दे रहा होता है।
लोकतंत्र के लिए ये उल्टी धारा की बेहद खतरनाक है, इसका कुप्रभाव समाज में दिखने लगा है। बीजेपी के कई झूठ को जनता सच मानने लगी है। बीजेपी के प्रोपगेंडा को जनता सूचना समझने लगी है। न्यूज चैनलों को देखना अपने नागरिक बोध को खत्म करना है। खुद को सूचना विहीन करना है।
आखिर फैसले की कॉपी में ऐसा क्या था जिसे लेकर मीडिया इतनी आंदोलित हो गई? जवाब है कुछ नहीं। बीजेपी की तरफ से इसे मुद्दें बनाया गया इसलिए मीडिया ने उठा लिया है।
फैसले की जो कॉपी सार्वजनिक हुई उसे संक्षेप ऐसे समझ लीजिए- NIA अदालत के न्यायाधीश जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों में आभाव रहा। जिसके चलते आतंकवाद का एक कृत्य अनसुलझा रह गया। जी हां, अनसुलझा रह गया। और अनसुलझा रहने के कारण आरोपी बरी हुए।
कायदे से इस फैसले के बाद बीजेपी को शर्म करनी चाहिए। क्योंकि ये उनकी जांच एजेंसी की असफलता है। पिछले पांच साल से देश में बीजेपी की सरकार है, कांग्रेस की नहीं। हो सकता है कांग्रेस ने इसमें गलती की है। लेकिन फैसला बीजेपी के शासन में आया है… अगर बीजेपी ब्लास्ट में मारे गए 68 लोगों को इंसाफ दिलवाना चाहती तो केस को दोबरा शुरू करने और नए सीरे से जांच की बात कहती।
लेकिन क्या बीजेपी ऐसा कर रही है? नहीं कर रही है। उल्टा मामले के अनसुलझा रहने से खुश नजर आ रही है। इसे मुद्दा बनाकर कांग्रेस को टारगेट कर रही है। अगर बीजेपी को लगता है कि कांग्रेस ने ठीक से जांच नहीं करवाया, उसके शासन काल में निर्दोष लोगों पर आरोप लगे वो केस को दोबारा शुरू कर दोषियों को पकड़ने का संकल्प क्यों नहीं ले रही? मीडिया में ये सवाल नहीं उठाया जाएगा। दर्शकों को खुद ये सवाल मीडिया से पूछना चाहिए।
बता दें कि 18 फरवरी, 2007 को हरियाणा के पानीपत में भारत-पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में ब्लास्ट हुआ था। 68 लोग मारे गए थे। इसे आतंकी घटना मानते हुए NIA ने जुलाई 2011 में आठ लोगों पर आरोप तय किए थे, इसमें स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी का भी नाम था। पिछले दिनों ये चारों बरी हो गए।