भारत ने पिछले कुछ महीनों में कोरोना वायरस, लॉकडाउन, अनलॉक, मज़दूरों का पलायन और न जाने क्या क्या देखा है। कोरोना महामारी से लड़ने के साथ-साथ अब देश एक नई मुसीबत से जूझ रहा है।
डिजिटल इंडिया में डिजिटल डिवाइड की मुसीबत।
भारत में कोरोना संक्रमण के कुल मामले 50 लाख का आंकड़ा पार करने को है। यही वजह है कि अनलॉक के बावजूद ज़िंदगी पहले जैसे पटरी पर नहीं आ पा रही है। स्कूल और कॉलेज तो अभी तक बंद है। इस सबके चलते छात्र-छात्राओं को अपना भविष्य भी खतरे में लगने लगा है। दरअसल क्लासेज ऑनलाइन चल रही हैं और अधिकतर ग्रामीण या अन्य गरीब छात्र-छात्राएं इंटरनेट की सुविधा से दूर हैं। इनमें से कुछ तो इतने मजबूर हैं कि घर मे ढंग का मोबाइल फ़ोन / स्मार्ट फ़ोन भी नहीं है।
ऑक्सफेम इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 80% बच्चों के पैरेंट्स का मानना है कि लॉकडाउन के चलते उनके बच्चों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। वो अपनी शिक्षा और कक्षा दोनों में पिछड़ गए हैं। 5 साल पहले लॉन्च हुआ ‘डिजिटल इंडिया’ भी इन बच्चों की मुसीबत दूर नहीं कर पाया। उल्टा यही उनकी मुसीबत बढ़ा रहा है।
दरअसल, रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के मात्र 15% ग्रामीण परिवारों के पास ही इंटरनेट की सुविधा है। यानी 85% ग्रामीण परिवार ऐसे हैं जिनके पास इंटरनेट की सुविधा का अभाव है।
अब हुआ ये कि लॉकडाउन के चलते कईं स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास लेना शुरू कर दिया। इस कारण ऐसे बहुत से बच्चे ऑनलाइन क्लास नहीं ले पाए, जबकि उनके सहपाठी उनसे आगे निकल गए। इंटरनेट की सुविधा का आभाव दलित, मुस्लिम और आदिवासी घरों में और भी ज़्यादा देखने को मिला है। यानी कि डिजिटल इंडिया अगड़े-पिछड़े के भेदभाव को कम करने के बजाए और बढ़ाता दिख रहा है। इसी को “डिजिटल डिवाइड” कहते हैं।
ऑक्सफेम इंडिया ने अपनी ये रिपोर्ट 4 सितंबर को जारी की थी जिसके लिए बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओड़ीसा के 1,158 पेरेंट्स और 488 टीचरों का सर्वे लिया गया था।
दरसअल,कोरोना काल और डिजिटल इंडिया में इंटरनेट की सुविधा न होने का खराब असर केवल स्कूली बच्चों पर ही नहीं पड़ा है। इसके कारण शहरी इलाकों में रहने वाले कॉलेज के छात्र-छात्राओं तक को तकलीफ़ उठानी पड़ रही है। दिल्ली विश्विद्यालय ने अगस्त महीने में ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा करवाई थी। इसमें कईं छात्र-छात्राओं को पोर्टल पर अपनी आंसर शीट अपलोड करने में खासा दिक्कत हुई। कुछ तो समय रहते अपलोड भी नहीं कर पाए।
इसके अलावा एंट्रेंस परीक्षाओं में बैठ रहे छात्र-छात्राओं को भी इस दोहरी आपदा से गुजरना पड़ रहा है। पहला तो ये कि महामारी के इस दौर में उन्हें सफ़र करके अपने परीक्षा केंद्र तक पहुंचने में दिक्कत होती है। इसके साथ-साथ उन्हें कंप्यूटर पर अपना एग्जाम देना होता है। एक्सपर्ट्स द्वारा कंप्यूटर पर परीक्षा लेना ही भविष्य बताया जाता है। लेकिन इस तरह की परीक्षा में सबसे ज़्यादा वही लोग पिछड़ जाते हैं जिन्हें इन उपकरणों के इस्तेमाल की आदत नहीं होती। छात्रों द्वारा विरोध जताने के बाद भी न तो कॉलेज की सेमेस्टर परीक्षाओं को टाला गया और न ही एंट्रेंस परीक्षाओं को।
प्रधानमंत्री मोदी के पास किसी भी आपात स्तिथि से लड़ने के लिए डिजिटल इंडिया अहम हो सकता था मगर जब सच मे इंडिया डिजिटल हुआ होता।
2016 में नोटबंदी करने का उद्देश्य था गलत तरीके से अर्जित किया हुआ धन पकड़ना। जब ऐसा हो न सका तो प्रधानमंत्री मोदी डिजिटल इंडिया पर ज़ोर देने लगे, डिजिटल करेंसी के फ़ायदे गिनाने लगे, डिजिटल माध्यमों के प्रयोग की भूमिका बताने लगे। नोटबंदी से न तो काला धन पकड़ में आया और न ही डिजिटल इंडिया सिक्योर हो पाया। बल्कि इंडिया टाइम्स में 23 दिसंबर 2016 को छपी रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के बाद डिजिटल क्राइम ज़्यादा बढ़ गए।
यही हाल अब भी है। कोरोना के चंद मामलों तक तो पूरे देश में लॉकडाउन था। पूरा अप्रैल महीना लॉकडाउन में गुजरा। इसके बावजूद स्वास्थ्य सुविधाओं को इस बीमारी से लड़ने के लिए बेहतर नहीं किया जा सका। यही नहीं, कई लोग दूसरी बीमारियों से केवल इसलिए मर गए क्योंकि कोरोना महामारी के चलते अस्पताल उन्हें एडमिट नहीं किया जा रहा। अब हाल ये है कि आए दिन कोरोना संक्रमण के लाखों नए मामले सामने आ रहे हैं।
इसके साथ ही इन सबके कारण छात्र-छात्राओं की शिक्षा पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को भी कम नहीं आंका जा सकता। असुविधा का सबसे ज़्यादा असर दलित, आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्र में रह रहे बच्चों पर पड़ रहा है।
प्रधानमंत्री का डिजिटल डिवाइड वाला ये डिजिटल इंडिया देश के पिछड़े समाज से आ रहे बच्चों, नौजवानों के साथ भेद-भाव का एक नया कारण बनता जा रहा है।
85% ग्रामीण छात्रों के पास नहीं है इंटरनेट-कैसे पढ़ें! मोदीजी, ये डिजिटल इंडिया है या डिवाइड इंडिया
‘दिव्यांगों’ के उद्धार का दावा करने वाले मोदी की खुली पोल, वाराणसी में ब्लाइंड स्कूल बंद होने के कगार पर
August 1, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में दृष्टि बाधित छात्रों के लिए एक स्कूल है जिसका नाम है श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय। अब इस ब्लाइंड स्कूल में कक्षा 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई को हमेशा के लिए बंद किया जा रही है। इस फैसले का ठीकरा आर्थिक तंगी और छात्रों की उदंडता पर फोड़ा जा रहा है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि स्कूल का लगभग 60% फंड सरकार की तरफ से आता है। बाकी का बचा फंड ‘श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार समृद्धि सेवा ट्रस्ट’ जुटाती है। इसका मतलब प्रधानमंत्री मोदी अपने ही क्षेत्र के दृष्टिबाधित बच्चों की पढ़ाई सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं। यही उनका कथित ‘दिव्यांग’ बच्चों के लिए तोहफा है?
कोरोना महामारी के चलते ये छात्र कहीं और दाखिला भी नहीं ले सकते। उनकी प्रतिभा को मौका न देकर उनका भविष्य अंधकार में ढकेला जा रहा है।
आपको बता दें कि स्कूल के प्रशासन द्वारा 9वीं से 12वीं कक्षा तक के बच्चों के घर चिट्ठी भेजी गई है। इस चिट्ठी में लिखा है कि कार्यकारिणी समिति ने इन कक्षाओं को आर्थिक तंगी के चलते बंद करने का फैसला लिया है। समिति का दावा है कि उसे सरकार से पिछले डेढ़ सालों में कोई फंड नहीं मिला है।
प्रेस आज़ादी: 180 देश में भारत 142वें नंबर पर चला गया है, फिर भी देश का मीडिया PR बना हुआ है
May 3, 2020
पत्रकारिता और पब्लिक रिलेशन्स (पीआर) के बीच एक महीन सी रेखा है जो इन दोनों को एक दूसरे से अलग बनाती है। पत्रकार का काम होता है सच दिखाना और पीआर वालों का काम होता है कि चाहे झूठ हो या सच, उसे बेच डालना।
भारत में टीवी मीडिया के ऐसे बहुत से कथित पत्रकार हैं जो सच और झूठ दोनों को बेच रहे हैं। सच में मिर्च मसाला लगाकर उसे एक अलग ही रंग दे रहे हैं, और झूठ बेचना तो उनके लिए अब खेल बन चुका है। आए दिन झूठी खबरों से TRP कमाने वाला ये गोदी मीडिया अब दंगाई मीडिया बन चुका है। एक ऐसा मीडिया जो लोगों के दिलों में एक दूसरे के लिए नफ़रत घोलता जा रहा है।
न्यूज़ 18 का एंकर अमीश देवगन मुंबई के कुर्ला में लोकल्स और पुलिस के बीच हुई झड़प को सांप्रदायिक रंग देकर बेचता है। वो कहता है कि मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के बाद मुस्लिम बाहर आए और पुलिसकर्मियों की पिटाई की। सच तो ये है कि “पीआर एजेंट” अमिश देवगन ने जिस घटना का ज़िक्र किया वहां आस पास कोई मस्जिद ही नहीं थी। इसी तरह दंगाई मीडिया के दूसरे पत्रकार भी फ़र्ज़ी खबरें फैलाते रहते हैं, नोटों से चिप निकालते रहते हैं। लेकिन उनके ऊपर कोई कार्यवाही नहीं होती।
स्वतंत्रता तो उन पत्रकारों की छीनी जाती है जो उन मुद्दों को उठाते हैं जिन्हें ऐसे “पी.आर. एजेंट” छापना नहीं चाहते। जो पत्रकार सरकार से सवाल करते हैं उन्हें जेल में डाला जाता है और जो सरकार का पीआर करते हैं उनकी जेबों को रुपए से भरा जाता है।
कोरोना जैसी महामारी के समय रिपोर्ट करने पर भी कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक पत्रकारों को गिरफ़्तार किया जा रहा है। यहां तक कि अंडमान के फ्रीलांस पत्रकार ज़ुबैर अहमद को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्होंने ट्वीट कर एक सवाल पूछ लिया। ज़ुबैर ने पूछा कि कोरोना संक्रमित मरीजों से महज बात करने पर उसके परिवार वालों को क्वारंटाइन क्यों किया जा रहा है? बस इसी बात पर उन्हें जेल में डाल दिया गया। फिलहाल उन्हें अंतरिम जमान दे दी गई है।
मोदी सरकार UAPA कानून ले आई ताकि एक व्यक्ति को भी “आतंकी” घोषित किया जा सके। अब इसका इस्तेमाल पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की ज़ुबान बंद करवाने के लिए हो रहा है। कश्मीर की पात्रकार Masrat Zahra को UAPA के तहत बुक किया गया है। कश्मीर के दो और पत्रकार, पीरज़ादा आशिक और गौहर जिलानी, पर भी कई तरह के आरोप लगाकर उनकी स्वतंत्रता पर सवालिया निशान लगा दिए।
भाजपा शासित राज्य उत्तर प्रदेश में एक पत्रकार से पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स इसलिए पूछताछ करती है क्योंकि उन्होंने बेकार क्वालिटी के PPE किट पर स्टोरी कर दी थी।
कुछ समय और पीछे चले जाएं, मार्च महीने में ड्यूटी पर जा रहे आजतक के पत्रकार नवीन कुमार को पुलिसकर्मियों ने बेरहमी से पीटा था।
शायद इसलिए हमारे देश में मेहनत से काम करने वाले पत्रकारों पर अत्याचार हो रहा है। इसलिए भारत “वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स” में 180 देशों में से 142वां स्थान पाता है।
उदाहरण बहुत सारे हैं, लेकिन सरकार और अधिकारियों के पास जवाब नहीं है। सवाल ये है कि पत्रकारों को दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले लोकतंत्र में सवाल करने पर जेल क्यों भेजा जाता है? सवाल ये है कि अगर जनता के मत से चुनकर आई सरकार को सवाल पसंद नहीं, तो क्या उन्हें लोकतंत्र भी पसंद नहीं? सवाल है कि क्या संविधान में मिले अधिकार के ज़रिए पत्रकार अगर ख़बर खोजते हैं तो उनपर अत्याचार क्यों?
सच तो ये है कि प्रेस फ्रीडम ही एक सवाल बन गया है, क्योंकि सवाल करने वाले पत्रकारों को तो जेल में डाला जा रहा है और “पीआर एजेंटों” का सम्मान किया जा रहा है।
https://boltahindustan.in/articles/why-indian-media-lost-its-spirit-to-demand-press-freedom/
कोरोनाः मोदी की बनवाई ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ बंद, नेहरू के बनवाए ‘अस्पताल’ 24 घंटे खुले
March 19, 2020
मोदी सरकार द्वारा बनवाई गई दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ भी कोरोना वायरस के कहर के चलते अकेली पड़ गई है। गुजरात सरकार ने यहां आने वाले पर्यटकों के प्रवेश पर 25 मार्च तक के लिये पाबंदी लगा दी है।
राज्य के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की प्रधान सचिव जयंती रवि ने मंगलवार को मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि नर्मदा जिला प्रशासन ने स्टेच्यू ऑफ यूनिटी पर पर्यटकों की आमद पर 25 मार्च तक रोक लगाने का फैसला लिया है। प्रशासन की ओर से ये फैसला कोरोना वायरस के ख़तरे के मद्देनज़र लिया गया है। हालांकि गुजरात में अभी तक कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया है।
BJP पर भड़के पत्रकार, बोले- 50 करोड़ में MLA खरीद सकते हैं, 5 हज़ार का कोरोना टेस्ट नहीं कर सकते
सरकार के इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं। यूज़र्स मोदी सरकार द्वारा बनवाई गई प्रतिमा की तुलना देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा बनवाए गए अस्पतालों से कर रहे हैं। यूज़र्स का कहना है कि मोदी सरकार ने जो प्रतिमा बनवाई उसे कोरोना के ख़तरे के चलते बंद करना पड़ा, वहीं नेहरू ने जो अस्पताल बनवाए वो कोरोना के ख़तरे में 24 घंटे खुले हैं।
महाराष्ट्र सरकार में मंत्री एवं एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड ने भी इसपर प्रतिक्रिया देते हुए ट्विटर के ज़रिए कहा, “मोदी द्वारा बनवाई गई बड़ी प्रतिमा पर्यटकों के लिए बंद है। नेहरू द्वारा बनवाए गए अस्पताल 24 घंटा खुले हैं। #CoronavirusOutbreak”.
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल की प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण 31 अक्टूबर 2018 को किया। अनावरण के बाद से ही ये पर्यटकों के लिये आकर्षण का केन्द्र बनी रही है।
कोरोना वायरस की विपदा से पहले यहां रोज हजारों की तादाद में टूरिस्ट्स आ रहे थे। उद्घाटन के बाद पहले सालभर में 27 लाख लोग यहां पहुंचे थे। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते फरवरी महीने में ही यहां रोजाना करीब 8,500 पर्यटक आ रहे थे।
https://boltahindustan.in/bh-news/statue-of-unity-closed-until-25-march-due-to-corona-fear-ncp-leader-reacted/
हमेशा ‘भाईचारा’ जीतेगा! द्धारका में हिंदुओं ने लगाए मस्जिद में पोस्टर- हमें माफ करना, हिंदू लव मुस्लिम
March 14, 2020
जिस भारत को पूरी दुनिया में मज़हबी भाईचारे के लिए जाना जाता है, क्या उस भाईचारे को कुछ चरमपंथी मस्जिद-मंदिर पर हमला कर ख़त्म कर सकते हैं? इस सवाल का जवाब दिल्ली के द्वारका में रहने वाले हिन्दुओं ने एक बेहतरीन नज़ीर पेश कर नहीं में दिया है।
दरअसल, 28 फरवरी को द्वारका सेक्टर 11 में शाहजहानाबाद के पास स्थित एक मस्जिद पर कथित तौर पर हमला किया गया था। इस हमले का मकसद समाज में नफ़रत फैलाना था, लेकिन द्वारका के ही रहने वाले हिन्दुओं ने इस मकसद को नाकाम कर दिया। इलाके के हिन्दुओं ने सांप्रदायिक सौहार्द कायम करने के लिए मस्जिद पर माफीनामा लिखकर चिपका दिया।
द क्विंट में छपी खबर के मुताबिक, इलाके के हिंदू इकठ्ठा होकर मस्जिद पहुंचे और वहां उन्होंने “वी लव मुस्लिम (हम मुस्लिम से प्यार करते है)” “वी आर सॉरी (हमे खेद है)” और “यू आर अस (आप हमारे है)” के पोस्टर चिपका दिए। हिन्दुओं द्वारा लगाए गए इन पोस्टर्स की तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी जमकर वायरल हो रही हैं।
पत्रकार शीबा असलम फहमी ने भी इन तस्वीरों को फ़ेसबुक के ज़रिए शेयर किया है। उन्होंने तस्वीरों को शेयर करते हुए लिखा, “कुछ दिनों पहले इसी मस्जिद पर पत्थर फेंके गए थे, आज वहाँ के लोकल हिंदुओ ने माफीनामा लिखकर मस्जिद पर चिपकाया है! जिन लोगों ने ये मोहब्बत का पैगाम दिया है उन सभी का बहुत शुक्रिया!”
बता दें कि कथित तौर पर शुक्रवार 28 फरवरी को तड़के करीब 2:30 बजे मस्जिद पर हमला किया गया था। मस्जिद के आसपास रहने वाले लोगों ने दावा किया था कि मस्जिद पर एक भीड़ ने पथराव किया था, जिसमें मस्जिद की खिड़कियों के कुछ शीशे टूट गए थे। पुलिस ने शुरुआत में इस खबर को अफ़वाह बताया था। हालांकि बाद में पुलिस ने ये स्वीकार किया था कि मस्जिद के शीशे पत्थर लगने से ही टूटे।
https://boltahindustan.in/bh-news/local-hindus-put-up-posters-of-love-on-mosque-in-dwarka-delhi/
महिलाएं बोझा उठा रही हैं, मंत्रालय वाहवाही कर रहा है! ये सशक्तिकरण नहीं मजबूरी है, बेरोजगारी है
March 8, 2020
4 मार्च को रेल मंत्रालय ने महिला कुलियों को सलाम करते हुए एक ट्वीट किया। जिसमें कहा गया कि ‘इन महिलाओं ने साबित किया है कि वह किसी से कम नहीं हैं’। इस पर तमाम प्रतिक्रियाएं भी आयीं।
बॉलीवुड अभिनेता वरुण धवन ने इसे रिट्वीट करते हुए लिखा- #coolieno1 । वहीं कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने रेल मंत्रालय की आलोचना करते हुए लिखा कि ‘यह अपमानजनक है। रेल मंत्रालय शर्म करने को बजाय इसकी सेखी बघार रहा है।
अब सवाल है कि बोझ उठाना सशक्त होने की परिभाषा हो सकती है? क्या यह सरकार की विफलता नहीं है? जहां बोझ ढ़ोने को रोजगार बताया जा रहा हो! बोझ ढ़ोना मजबूरी का पर्याय हो सकता है, सशक्तिकरण का नहीं। अगर इन महिलाओं को सामान अवसर मिले होते, शिक्षा मिली होती तो हो सकता है वह किसी और प्रोफेशन को चुनतीं।
इन महिलाओं को सलाम किया जा सकता है लेकिन आजादी के 70 सालों बाद भी आप कितना सशक्त कर पाएं हैं इससे ये साफ हो जाता है। यह बेरोजगारी को दिखाता है। आने वाले 8 मार्च को जब पूरा विश्व महिला दिवस मना रहा होगा तब क्या हम महिला सशक्तिकरण की ऐसी परिभाषा देंगे?
अगर आप इस परिभाषा से आप खुश हैं तो मुझे आपसे कुछ नहीं कहना! आज शिक्षा क्षेत्र की स्थिति किसी से छुपी नहीं है ज्यादातर शिक्षा निजी हाथों में जा रही है, प्रोफेसनल कोर्स महँगे कर दिए गयें हैं। और हम आज भी पितृसत्तात्मक समाज में रह रहे हैं जहाँ महिला दोयम दर्जे की नागरिक है ऐसे में लड़के घर की प्रथमिकता होते हैं और माता-पिता अगर एक बच्चे को पढ़ाने में सक्षम हैं तो वो लड़के को चुनते हैं।
इसका सीधा मतलब है कि सरकारें अभी भी महिलाओं को शिक्षा देने में नाकाम है शिक्षा का सवाल सीधे रोजगार से जुड़ा है।आँकड़ो की माने तो महिला श्रमबल में कमी आयी है PLFS जारी आंकड़े के अनुसार महिलाओं की भागीदारी दर 49.4 फीसदी से घटकर 2011-12 में 35.8 फीसदी पर आ गई और 2017-18 में यह घटकर 24.6 फीसदी पर पहुंच गई है।
अब यहाँ समझना है कि मंत्रालय द्वारा इस तरह का ये ट्वीट कितना उचित है और महिला सशक्तिकरण की के किस रूप को दिखाता है। इतना तो साफ तौर पर कहा जा सकता है कि बोझ ढोना कहीं से भी रोजगार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
https://boltahindustan.in/articles/ministry-of-railway-criticized-for-its-tweet-on-lady-cooolies/
गुजराती कारोबारी को YES बैंक संकट की थी ख़बर! पाबंदी लगने से एक दिन पहले निकाले 265 करोड़
March 7, 2020
गुरूवार को रिजर्व बैंक ने यस बैंक के ग्राहकों के लिए 50 हजार रूपये तक की निकासी सीमा तय कर दी थी लेकिन खबर आ रही है कि आरबीआई के इन नियमों के आने से ठीक एक दिन पहले ही गुजरात के एक कारोबारी ने 265 करोड़ रूपये निकाल लिया था।
सूत्रों से मिली खबर के अनुसार, ये राशि दूसरे दिन ही किसी और बैंक में जमा कर दी गई है। बिजनेस स्टेंडर्ड में प्रकाशित एक खबर के अनुसार- इस कंपनी का नाम वडोदरा स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कंपनी है। भीएमसी के उप म्युनिसिपल कमिशनर के अनुसार उन्हे यह राशि केंद्र सरकार के द्वारा प्राप्त हुई थी, जिसे यस बैंक में जमा कर दिया था।
यस बैंक संकट : जयवीर शेरगिल बोले- और कितने बैंक कंगाल होने के बाद ‘वित्तमंत्री’ इस्तीफा देंगी?
बता दें कि रिजर्व बैंक के नए प्रतिबंधों के अनुसार कोई भी उपभोक्ता एक महीने में 50 हजार से ज्यादा निकासी नहीं कर सकता है। इसके साथ ही आरबीआई ने यस बैंक पर और भी कई कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। बाजार में आया भूचाल यस बैंक पर लगे कड़े प्रतिबंधों में के बाद शेयर बाजार बुरी तरह गिर चुका है।
ताजा आकड़ों के मुताबिक गुरूवार सेंसेक्स में 893 अंक गिर कर 37 हजार 576 अंक पर आ गया था वहीं अगर निफ्टी की बात करें तो उसमें भी 279 अंको की गिरावट देखी गई थी।
अब यस बैंक भी डूबा! पप्पू यादव बोले- चिंता न करें, मोदी मंत्र का जाप करें, दर्द का अहसास नहीं होगा
यस बैंक पर पड़े इस आर्थिक संकट का असर दूसरे कई बैंको पर भी देखने को मिल रहा है। भारत के सबसे बड़े बैंक समूह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का शेयर भी आज तकरीबन 6 फीसदी तक गिर चुका है वहीं आईडीबीआई बैंक का शेयर 11 फीसदी तक गिर चुका है।
वहीं अगर आज बाजार में विनिर्माण सेक्टर की बात करें तो टाटा स्टील के शेयर भी 5 फीसदी तक गिर चुका है। इस गिरावट के पीछे विदेशी बाजारों की गिरावट का असर बताया जा रहा है।
https://boltahindustan.in/bh-news/gujarati-company-withdraws-265-crore-day-before-ban-on-yes-bank/
मीडिया पर नज़र: यस बैंक के खाताधारक रो रहे हैं लेकिन गोदी मीडिया अभी भी ‘हिंदू-मुस्लिम’ कर रहा है
March 7, 2020
देशभर में यस बैंक के खाताधारक परेशान है, दिल्ली में साम्प्रदायिक हिंसा के बाद चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ है, सेंसेक्स लगातार नीचे गिर रहा है लेकिन भारतीय मीडिया आज भी अपने पुराने एजेंडे हिन्दू-मुस्लिम करवाने पर कायम है।
मीडिया को समाज का आईना कहा जाता है और आईना हमको हमारी वर्तमान तस्वीर ही दिखाता है लेकिन भारतीय मीडिया के संबंध में यह बात फिट नहीं बैठती है। भारतीय मीडिया हर बार आईने में सिर्फ एक ही तस्वीर दिखाती है।
आज देश का सबसे बड़ा मुद्दा यस बैंक संकट है जिसको लेकर तमाम यस बैंक खाताधारक परेशान है। लेकिन भारतीय मीडिया के मुख्य चैनल आम लोगों की परेशानी को नज़रअंदाज करते हुए आज भी हिन्दू-मुसलमान पर प्राइम टाइम डिबेट करवा रहे है।
‘यस बैंक संकट’ का जिम्मेदार राणा कपूर है, जो मोदी को अर्थशास्त्री और नोटबंदी को अच्छा बताता था
न्यूज़18 के 7 बजे वाले प्राइम टाइम आरपार में बहस का मुद्दा आज “हिंसा पर सेक्युलरिज़्म” है मेरा सवाल है आखिर क्यों मुख्य मीडिया आम जनता और सरकार से सम्बंधित मुद्दों पर बात करने से डरती है क्यों अमिश देवगन सरकार से सीधे सवाल नहीं कर पाते है। क्यों आज मीडिया को यस बैंक के बहार लगी परेशान भीड़ नहीं दिख रही है इसका सीधा सा जवाब है मीडिया से कोई सवाल नहीं करता है।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था पर बात कर सकते है लेकिन हमारी मीडिया सिर्फ हिन्दू-मुसलमान पर बात करती है। हमारी मीडिया सिर्फ मुर्गो की लड़ाई करवाना पसंद करती है। क्या भारतीय मीडिया को देशभर में हो रहे हिन्दू मुसलमान दंगो से पेट नहीं भर रहा है या फिर मीडिया किसी के दबाव में काम कर रही है।
https://boltahindustan.in/media-par-nazar/godi-media-silents-on-yes-bank-crisis/
भाजपा पहले सत्ता में आने के लिए दंगे करवाती थी अब सत्ता में बने रहने के लिए दंगे करवाती है : हार्दिक
January 28, 2021
गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में ट्रेक्टर परेड के दौरान कई जगहों पर छिटपुट हिंसा देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों के ट्रैक्टर परेड से पहले सिंघु बॉर्डर से एक संदिग्ध को गिरफ्तार किया गया था। जिसके बाद किसान संगठन के नेताओं ने आंदोलन की फिराक में दंगा करवाए जाने के आरोप लगाए थे।
लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराने के आरोपी दीप सिद्दू के भाजपा के साथ कनेक्शन सामने आ चुके हैं। जिसने किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश रची।
किसान संगठनों द्वारा पहले से ही ये आरोप लगाए जा रहे थे कि अगर ट्रैक्टर परेड के दौरान किसी भी तरह की हिंसा होती है तो यह पहले से सुनिश्चित दंगा ही होगा।
अब इस मामले में गुजरात से युवा नेता हार्दिक पटेल ने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा है कि “फिर से याद दिलाता हूँ। भाजपा पहलें सत्ता में आने के लिए दंगा करवाती थी और अब सत्ता में बने रहने के लिए दंगे करवाती हैं।”
इससे पहले हार्दिक पटेल ने यह भी कहा था कि भारतीय जनता पार्टी जानबूझकर किसान आंदोलन को बदनाम करना चाहती है और इसके लिए वह किसी भी हद तक जाएगी।
गणतंत्र दिवस की मुख्य परेड खत्म होने के बाद लाल किले पर भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा ही दंगा किया गया है। जिसकी आड़ में किसान आंदोलन को बदनाम किया जा सके।
आपको बता दे कि दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के सिलसिले में पुलिस ने भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, मेधा पाटकर समेत 37 नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी है।
इस मामले में राकेश टिकैत ने कहा है कि 26 जनवरी को दिल्ली में जो भी घटना हुई। उसके पीछे प्रशासन की चाल थी। हमें जो रूट दिए गए थे। उन पर बैरिकेडिंग लगा दी गई।
किसानों को भ्रमित किया गया और असामाजिक तत्वों को जानबूझकर देने में एंट्री दे दी गई।
https://boltahindustan.in/trending-stories/hardik-patel-blames-bjp-for-violence-in-delhi-on-republic-day/
जो JNU और दिल्ली दंगों में हुआ वही लाल किला हिंसा में भी होगा, आरोपी को छोड़ सब पकड़े जाएंगे : कृष्णकांत
January 28, 2021
अभिनेता और भाजपा सांसद सनी देओल उसे छोटा भाई बता चुके हैं। वह सनी देओल के करीब रहकर चुनाव प्रचार कर चुका है। सनी देओल के साथ उसकी कई तस्वीरें सार्वजनिक रूप से मौजूद हैं।
वह दिल्ली में हिंसा भड़काने वालों की अगली कतार में है। सनी देओल कह रहे हैं मैं उसे जानता तक नहीं।
उसकी नरेन्द्र मोदी के साथ तस्वीरें हैं। उसके बीजेपी से जुड़े होने संबंधी मीडिया रिपोर्ट हैं। लेकिन इसे झुठलाया जाएगा।
2019 के लोकसभा चुनाव में सनी देओल के पूरे प्रचार में वह उनके साथ था। सनी के साथ दीप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी।
दीप खुद को बीजेपी सांसद सनी देओल का कज़िन बताता है। पीएम और सनी देओल के साथ दीप के कई फ़ोटो वायरल हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा दीप सिद्धू से पहले से ही किनारा करता रहा है. ये शख्स बार बार किसान आंदोलन में नेता बनने की कोशिश कर रहा था जिसे बार बार भगाया गया।
द ट्रिब्यून ने लिखा है, ‘लाल किले पर दीप सिद्धू ने ही उस युवक को केसरी झंडा लगाने के लिए दिया था।’ ये वही आदमी है जिसे एक महीने पहले किसान नेताओ ने इस “आंदोलन का दुश्मन” बताया था।
अखबार के मुताबिक, इसी व्यक्ति ने परेड से एक दिन पहले तय रुट से न जाने के लिए किसानों को भड़काया।
दीप सिदधू के साथ एक लाखा सिधाना है जो गैंगस्टर है। उस पर दो दर्जन मुकदमे हैं। ये दोनों आंदोलन को सांप्रदायिक बनाने की पूरी कोशिश में लगे थे।
पहले ये एक्टर था, फिर किसान बन गया। आंदोलन को कम्युनिस्टों का आंदोलन बता रहा था और इसके संगठन को कुछ खालिस्तानी तत्वों का समर्थन मिल रहा था।
लेकिन जैसा कि शाहीनबाग और जेएनयू मामलों में हुआ, जैसा दिल्ली दंगों के मामले में हुआ, आरोपी को छोड़कर सभी पकड़े जाएंगे। बाकी आप समझदार हैं।
https://boltahindustan.in/social/journalist-claims-bjp-government-will-favor-deep-siddhu-and-will-act-against-farmers/
कृषि कानूनों के विरोध में अभय सिंह चौटाला ने दिया इस्तीफा, बोले- कुर्सी नहीं किसानों की खुशहाली चाहिए
January 28, 2021
बीते साल शुरू हुए किसान आंदोलन के बाद से ही पंजाब और हरियाणा से भारतीय जनता पार्टी और उनकी सहयोगी पार्टियों के कई नेताओं ने इस्तीफे दिए हैं।
खास तौर पर हरियाणा की खट्टर सरकार पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। दरअसल हरियाणा में भाजपा की सहयोगी पार्टियां भी कृषि कानूनों को वापस लिए जाने का दबाव बना रही है।
इसी बीच अब भारतीय राष्ट्रीय लोक दल के नेता अभय सिंह चौटाला ने हरियाणा विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
उन्होंने मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन के समर्थन में इस्तीफा दिया है। जिसे विधानसभा अध्यक्ष द्वारा मंजूर भी कर लिया गया है।
माना जा रहा है कि अभय सिंह चौटाला द्वारा दिए गए इस्तीफे के बाद हरियाणा की सियासत में उथल-पुथल मच सकती है।
विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद इसकी जानकारी खुद अभय सिंह चौटाला ने ट्विटर पर दी है।
उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि “मुझे कुर्सी नहीं मेरे देश का किसान खुशहाल चाहिए! सरकार द्वारा लागू इन काले कानूनों के खिलाफ मैंने अपना इस्तीफा दे दिया है।
मैं विपक्ष में बैठे अन्य सभी नेताओं और किसान पुत्रों से निवेदन करता हूँ कि वो इस संघर्ष की लड़ाई में किसान के साथ खड़े हों।”
गौरतलब है कि इससे पहले भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी के अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला पर भी कृषि कानूनों के विरोध में पार्टी के विधायकों द्वारा यह दबाव बनाया जा रहा है कि वह भाजपा से अपना सहयोग वापस ले।
हरियाणा के उपमुख्यमंत्री और भतीजे दुष्यंत चौटाला का नाम लिए बिना ही अभय सिंह चौटाला ने कहा है कि जो लोग किसानों को गुमराह करके सत्ता में आए हैं। उनके लिए राज्य के किसानों को जवाबदेही मुश्किल हो सकती है।
https://boltahindustan.in/trending-stories/inld-leader-abhay-singh-chautala-resigns-in-oppose-of-farm-laws/
150 किसान प्रोटेस्ट में मर गए, हजारों आत्महत्या कर चुके और लाखों गरीबी में मर रहे हैं, क्या ये हिंसा नहीं है?
January 27, 2021
कल गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों के ऐतिहासिक मार्च के दौरान हुई कुछ अप्रिय घटनाओं को आधार बनाकर मीडिया ने किसानों के खिलाफ एकतरफा मुहिम छेड़ दी है।
प्रदर्शनकारी किसानों को हिंसक बताने की साजिश के तहत स्पेशल प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं, विशेष लेख लिखे जा रहे हैं।
हालांकि गोदी मीडिया की इन कोशिशों को सोशल मीडिया पर चुनौती मिल रही है जिसकी मिसाल है पत्रकार कृष्णकांत का ये लेख, जिसमें वह सवाल कर रहे हैं कि प्रदर्शनकारी किसानों की मौत हो या फिर कर्ज में दबे किसानों की आत्महत्या क्या ये हिंसा नहीं है?
पढ़ें लेख-
हिंसा वह भी है जब 150 से ज्यादा लोग मर गए लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई. हिंसा वह भी है जब छह महीने से लाखों लोगों को सुनने इनकार किया जा रहा है.
हिंसा वह भी थी जब सत्ता के चमकदार चमचे 90 साल की बूढी़ महिला को ‘पेशेवर’ प्रदर्शनकारी बता रहे थे.
हिंसा वह भी थी जब शांतिपूर्ण ढंग से बैठे लोगों को ‘खालिस्तानी’ कहा गया. हिंसा वह भी थी जब बुजुर्ग किसानों को फर्जी किसान बताया गया. हिंसा वह भी थी जब पुलिस ने किसानों का रास्ता रोकने के लिए सड़कें खोद डाली थीं.
अराजकता वह भी थी जब कोरोना लॉकडाउन में चोर दरवाजे से विवादित कानून लागू किए. हिंसा वह भी है जब देश के सारे संसाधन दो-चार लोगों को सौंपने के लिए सरकार अपनी जनता को आतंकवादी बता सकती है लेकिन उनका डर नहीं समझ सकती.
हिंसा वह भी है जब हर साल हजारों किसान आत्महत्या कर लेते हैं और सरकार उन पर ध्यान तक नहीं देती. हिंसा वह भी है कि अब तक साढ़े तीन लाख आत्महत्या कर चुके हैं.
हिंसा वह भी है कि सरकार कॉरपोरेट का लाखों करोड़ चुपके से माफ कर देती है लेकिन किसान कर्ज ले ले तो उसे आत्महत्या करनी पड़ती है.
हिंसा वह भी है जब पुलिस और खुफिया एजेंसियों को पहले से मालूम था कि गड़बड़ी हो सकती है, फिर भी सवाल सिर्फ किसानों से किया जा रहा है.
https://boltahindustan.in/social/media-and-modi-govt-have-been-exposed-on-oppression-of-farmers/
दीप सिद्धू की तस्वीर PM के बजाए विपक्षी नेता के साथ होती तो मीडिया उसे आतंकवादी बता चुकी होती : रोहिणी सिंह
January 27, 2021
गणतंत्र दिवस के मौके पर कल सभी ट्रैक्टर परेड के दौरान कुछ लोगों ने जानबूझकर हिंसा को अंजाम दिया। यहां तक कि एक शख्स ने लाल किले के गुंबद के पास बने खंभे पर चढ़कर धार्मिक झंडा फहरा दिया।
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि ये सब करने वाले लोग भाजपा से जुड़े लोग है। वे हमारी विचारधारा के लोग नहीं है।
लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराने वाले शख्स का नाम दीप सिद्धू है। जो कि भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता बताया जा रहा है।
क्योंकि सोशल मीडिया पर दीप सिद्धू की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा नेता सनी देओल के साथ तस्वीरें मौजूद हैं।
यहां तक कि दीप सिद्धू ने साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान गुरदासपुर सीट से चुनाव लड़ने वाले सनी देओल के लिए चुनाव प्रचार भी किया था।
इस मामले में पत्रकार रोहिणी सिंह ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा है कि ‘कल्पना करिए दीप सिद्धू की तस्वीर विपक्ष के किसी नेता के साथ मिल गयी होती।
अब तक दीप आतंकवादी, और राजनीतिक दल आतंकियों का संरक्षक और देश विरोधी बन जाते। टीवी पर एंकर चीख चीख कर चिल्ला रहे होते कि सारी साजिश विपक्ष ने रची है। पर आज सब चुप हैं, इन ‘रंगे सियारों’ की असलियत यही है।’
गौरतलब है कि कथित रूप से भाजपा से जुड़े दीप सिद्धू पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
विपक्ष का कहना है भाजपा के कार्यकाल में उठने वाले विरोधी स्वरों को दबाने के लिए उनपर राजद्रोह का केस डालना आम बात बन चुका है। कई कार्यकर्ताओं को कई महीनों तक जेल में बंद रखा गया है।
लेकिन दीप सिद्धू पर भाजपा ने मौन धारण कर रखा है। अगर दीप सिद्धू किसी विपक्षी दल के नेता का करीबी होता तो अब तक जेल में डाल दिया गया होता।
https://boltahindustan.in/trending-stories/journalist-rohini-singh-questions-bjp-and-media-over-deep-siddhu-connection/
सरकार ने उपद्रवियों के साथ मिलकर रची हिंसा की साज़िश, अमित शाह बर्खास्त हों : कांग्रेस
January 27, 2021
गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसक घटनाओं के लिए कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि ये घटना पूरी तरह से गृह मंत्री अमित शाह की नाकामी है। उन्हें इस घटना के बाद पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है, उन्हें तत्काल प्रभाव से बर्खास्त किया जाना चाहिए।
सुरजेवाला ने बुधवार को एक प्रेस कांफ्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि दिल्ली में लालकिला से लेकर आईटीओ तक उत्पात मचता रहा।
लेकिन गृह मंत्री कोई भी एक्शन लेने में असफल रहे। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिल्ली दंगा हुआ। उस समय भी गृह मंत्री की असफलता सामने आई।
उन्होंने कहा कि दिल्ली में खुफिया तंत्र की विफलता सामने आई। इसके लिये भी अमित शाह को जिम्मेदारी लेनी चाहिये।
इस घटना के बाद उन्हें पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है, उन्हें तत्काल प्रभाव से मंत्रीमंडल से बाहर किया जाना चाहिए।
इस दौरान कांग्रेस प्रवक्ता ने दीप सिद्धू के बीजेपी कनेक्शन पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि लालकिला की घटना की जांच की जानी चाहिये।
उन्होंने यहां सरकार पर उपद्रवियों के साथ मिलकर हिंसा की साज़िश रचने का भी आरोप लगाया। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “उपद्रवियों की अगुवाई कर रहे अवांछित तत्वों पर मुकदमे दर्ज न कर किसान मोर्चा नेताओं पर मुकदमे दर्ज करने ने मोदी सरकार-उपद्रवियों की मिलीभगत व साजिश को बेनकाब किया”।
बता दें कि गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसक घटनाओं के मामले में अबतक 200 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। वहीं दो दर्जन से भी ज्यादा किसान नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज की गई है।
लेकिन इस मामले जिन लोगों पर हिंसा को भड़काने के आरोप हैं, उनको गिरफ्तार नहीं किया गया है। जिसको लेकर सवाल उठ रहे हैं।
वहीं हिंसक घटनाओं के बाद दो गुट ने किसान आंदोलन से ख़ुद को अलग करने का फैसला किया है। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के नेता वीएम सिंह और भानु प्रताप ने आंदोलन से अगल होने की घोषणा कर दी है।
https://boltahindustan.in/bh-news/congress-leader-randeep-surjewala-questions-bjp-over-lal-qila-incident/
सुब्रमण्यन स्वामी ने भी किया दावा- सनी देओल का कैंपेन मैनेजर रहा है सिद्धू, इमरान बोले- साज़िश की परतें खुल रही हैं
January 27, 2021
कृषि कानूनों के खिलाफ बीते 2 महीनों से किसान संगठनों द्वारा शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया जा रहा था। कल ट्रैक्टर परेड के दौरान प्रदर्शनकारियों में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा किसानों की छवि को खराब करने के लिए कई जगह हिंसा को अंजाम दिया गया।
लाल किले पर झंडा फहराने वाले दीप सिद्धू का सीधा कनेक्शन भारतीय जनता पार्टी के साथ है। जिसपर किसानों को उकसा कर दिल्ली पुलिस द्वारा तैयार रूटों पर ट्रैक्टर परेड निकालने से अलग लाल किले की तरफ ले जाया गया।
इस मामले में अब भारतीय जनता पार्टी के नेता और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की भी प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने ट्वीट कर इस घटना में भाजपा नेता का हाथ होने का शक जाहिर किया है।
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर कहा है कि “सोशल मीडिया पर कुछ खबरें चल रही हैं कि पीएमओ के करीबी भाजपा के सदस्य ने लाल किले में हुए ड्रामे के दौरान भड़काऊ शख्स के तौर पर काम किया है। इस खबर को चेक किया जाए और जानकारी दी जाए।”
इसके साथ ही सुब्रमण्यम स्वामी ने एक और ट्वीट किया है। जिसमें यह कहा गया है कि लाल किले में हुई हिंसा का आरोपी दीप सिद्धू भाजपा सांसद सनी देओल का कैंपेन मैनेजर रह चुका है।
इस खबर को शेयर करते हुए शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है।
अपने अधिकारी का फेसबुक अकाउंट पर इमरान प्रतापगढ़ी ने सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा कही गई बात की खबर को शेयर करते हुए लिखा है कि साजिश की परते खोलेंगे।
गौरतलब है कि इससे पहले किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान संगठनों के नेताओं ने कहा है कि दिल्ली में हुई हिंसा से उनका कोई लेना-देना नहीं है।
ये भाजपा के लोगों द्वारा किया गया। लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराने वाले लोगों को गिरफ्तार करना चाहिए।