उसका हिडन एजेंडा एक ही है अंततः इस देश में जाति विशेष का राज स्थापित करना, जिसका भ्रामक नाम ‘हिन्दू राष्ट्र’ है, लेकिन है वह एक दो जातियों का वर्चस्व स्थापित करने के लिए सार्वजनिक रूप से ओढ़ी गई ‘भेड़िए की खाल’ है. जो बाहर से कुछ है और अंदर से कुछ.
आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गोलवलकर ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर एक आम सभा को संबोधित करते हुए तिरंगे को नकारते हुए कहा था कि ‘’सिर्फ और सिर्फ भगवा ध्वज ही भारतीय संस्कृति को पूरी तरह प्रतिबिंबित करता है, हमें पूरा यकीन है अंततः पूरा देश भगवा ध्वज के सामने ही अपना सिर झुकाएगा.’’
अब सवाल ये उठता है कि आरएसएस को बनाने वाले हेडगेवार और उसका विस्तार करने वाले गोलवलकर को जिन्हें तिरंगे के तीन रंगों से मानसिक तनाव होता था, जिन्हें तिरंगे से मनोवैज्ञानिक असर पड़ता था, जिनका कहना था कि ‘तिरंगे’ से देश को नुकसान होगा. क्या उस आरएसएस को तिरंगे से मानसिक तनाव होना बंद हो गया है?
इसका जवाब ये है कि तनाव तो आज भी उतना ही है जितना हेडगेवार को था लेकिन आरएसएस के पास एक कला है कि वह समय के साथ तुरंत उन चीजों का अपहरण करने लगता है जिसका उसे राजनीतिक लाभ होना है.
प्रधानमंत्री जी ही अंदर बंद कमरे में ‘सावरकर’ की पूजा करते हैं और बाहर विदेशों में ‘गांधी’ होने की एक्टिंग करते हैं. अन्यथा गांधी का पूजक ‘गांधी’ की हत्या के आरोपी का भी पूजक कैसे हो सकता है. पर आरएसएस पर यही एक नकली एक्टिंग आती है जिसे प्रधानमंत्री सार्वजनिक मंचों से करते हैं. कल परसों देख रहा था किस तरह बंगाल चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने के लिए पहुंचे प्रधानमंत्री कह रहे थे कि ‘बंगाल ने देश को राष्ट्रगान’ दिया.
जबकि आरएसएस के स्वयंसेवक स्पष्ट तौर पर मानते हैं कि रविन्द्रनाथ टैगोर ने ‘राष्ट्रगान’ अंग्रेजों की प्रशंसा में लिखा था. इसलिए वे ‘जन गण मन’ को राष्ट्रगान मानते ही नहीं. उसी परंपरा से निकले प्रधानमंत्री आज ‘जन गण मन’ पर मंत्रमुग्ध हो रहे हैं. और गजब का अभिनय भी कर रहे हैं.
आरएसएस के स्वयंसेवक इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं. और वे लोग भी जानते होंगे जो आरएसएस की शाखाओं में गए हैं, या उसके कैम्पों में गए हैं, जिन्होंने आरएसएस के प्रचारकों को सामने से सुना है कि स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीकों ‘तिरंगा, संविधान और राष्ट्रगान के प्रति आरएसएस का आंतरिक मत क्या है और सार्वजनिक दिखावा क्या है.
दूसरी बात ये कि तिरंगा, संविधान और राष्ट्रगान पर आरएसएस के विचार जानने के लिए आपको इतिहास पढ़ने की जरूरत नहीं है, एकदम नहीं है. इनके कैंपों में दो मिनट बैठकर सुन आइए, आपका सारा भ्रम उतर जाएगा कि आरएसएस तिरंगा, संविधान या राष्ट्रगान से प्रेम करता है. दो मिनट में आपको आरएसएस की सार्वजनिक एक्टिंग और प्राइवेट एजेंडा का मालुम चल जाएगा.
यही एक कला है आरएसएस के पास, इसी धूर्तता के मामले में बाकी संगठन, पार्टियां आरएसएस से पीछे रह जाती हैं. आज जन गण मन और तिरंगा, जनमानस में राष्ट्र प्रेम के प्रतीक के रूप में स्थापित हो चुके हैं तो आज आरएसएस राष्ट्रगान और तिरंगे का सबसे बड़ा ‘रक्षक’ बन गया है.
जिस दिन इस देश में गोडसे सार्वजनिक रूप से स्थापित हो जाएगा उसी दिन गांधी की तस्वीरों को तोड़कर कचरे में फैंकने वाले आरएसएस के स्वयंसेवक सबसे आगे होंगे. जिस दिन लोग तन-मन और धन से भगवामयी हो जाएंगे उसी दिन आरएसएस ऐसा पहला संगठन होगा जो लाल किले से तिरंगे को उखाड़ जमीन पर फैंक देगा

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