85% ग्रामीण छात्रों के पास नहीं है इंटरनेट-कैसे पढ़ें! मोदीजी, ये डिजिटल इंडिया है या डिवाइड इंडिया

PM मोदी का ‘डिजिटल इंडिया’ बना ‘डिजिटल डिवाइड’ 85% ग्रामीणों के पास नहीं है इंटरनेट सेवा, ऑनलाइन क्लासेज के दौरान ये कैसे करें पढ़ाई?

भारत ने पिछले कुछ महीनों में कोरोना वायरस, लॉकडाउन, अनलॉक, मज़दूरों का पलायन और न जाने क्या क्या देखा है। कोरोना महामारी से लड़ने के साथ-साथ अब देश एक नई मुसीबत से जूझ रहा है।
डिजिटल इंडिया में डिजिटल डिवाइड की मुसीबत।

भारत में कोरोना संक्रमण के कुल मामले 50 लाख का आंकड़ा पार करने को है। यही वजह है कि अनलॉक के बावजूद ज़िंदगी पहले जैसे पटरी पर नहीं आ पा रही है। स्कूल और कॉलेज तो अभी तक बंद है। इस सबके चलते छात्र-छात्राओं को अपना भविष्य भी खतरे में लगने लगा है। दरअसल क्लासेज ऑनलाइन चल रही हैं और अधिकतर ग्रामीण या अन्य गरीब छात्र-छात्राएं इंटरनेट की सुविधा से दूर हैं। इनमें से कुछ तो इतने मजबूर हैं कि घर मे ढंग का मोबाइल फ़ोन / स्मार्ट फ़ोन भी नहीं है।

ऑक्सफेम इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 80% बच्चों के पैरेंट्स का मानना है कि लॉकडाउन के चलते उनके बच्चों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। वो अपनी शिक्षा और कक्षा दोनों में पिछड़ गए हैं। 5 साल पहले लॉन्च हुआ ‘डिजिटल इंडिया’ भी इन बच्चों की मुसीबत दूर नहीं कर पाया। उल्टा यही उनकी मुसीबत बढ़ा रहा है।

दरअसल, रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के मात्र 15% ग्रामीण परिवारों के पास ही इंटरनेट की सुविधा है। यानी 85% ग्रामीण परिवार ऐसे हैं जिनके पास इंटरनेट की सुविधा का अभाव है।

अब हुआ ये कि लॉकडाउन के चलते कईं स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास लेना शुरू कर दिया। इस कारण ऐसे बहुत से बच्चे ऑनलाइन क्लास नहीं ले पाए, जबकि उनके सहपाठी उनसे आगे निकल गए। इंटरनेट की सुविधा का आभाव दलित, मुस्लिम और आदिवासी घरों में और भी ज़्यादा देखने को मिला है। यानी कि डिजिटल इंडिया अगड़े-पिछड़े के भेदभाव को कम करने के बजाए और बढ़ाता दिख रहा है। इसी को “डिजिटल डिवाइड” कहते हैं।

ऑक्सफेम इंडिया ने अपनी ये रिपोर्ट 4 सितंबर को जारी की थी जिसके लिए बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओड़ीसा के 1,158 पेरेंट्स और 488 टीचरों का सर्वे लिया गया था।

दरसअल,कोरोना काल और डिजिटल इंडिया में इंटरनेट की सुविधा न होने का खराब असर केवल स्कूली बच्चों पर ही नहीं पड़ा है। इसके कारण शहरी इलाकों में रहने वाले कॉलेज के छात्र-छात्राओं तक को तकलीफ़ उठानी पड़ रही है। दिल्ली विश्विद्यालय ने अगस्त महीने में ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा करवाई थी। इसमें कईं छात्र-छात्राओं को पोर्टल पर अपनी आंसर शीट अपलोड करने में खासा दिक्कत हुई। कुछ तो समय रहते अपलोड भी नहीं कर पाए।

इसके अलावा एंट्रेंस परीक्षाओं में बैठ रहे छात्र-छात्राओं को भी इस दोहरी आपदा से गुजरना पड़ रहा है। पहला तो ये कि महामारी के इस दौर में उन्हें सफ़र करके अपने परीक्षा केंद्र तक पहुंचने में दिक्कत होती है। इसके साथ-साथ उन्हें कंप्यूटर पर अपना एग्जाम देना होता है। एक्सपर्ट्स द्वारा कंप्यूटर पर परीक्षा लेना ही भविष्य बताया जाता है। लेकिन इस तरह की परीक्षा में सबसे ज़्यादा वही लोग पिछड़ जाते हैं जिन्हें इन उपकरणों के इस्तेमाल की आदत नहीं होती। छात्रों द्वारा विरोध जताने के बाद भी न तो कॉलेज की सेमेस्टर परीक्षाओं को टाला गया और न ही एंट्रेंस परीक्षाओं को।

प्रधानमंत्री मोदी के पास किसी भी आपात स्तिथि से लड़ने के लिए डिजिटल इंडिया अहम हो सकता था मगर जब सच मे इंडिया डिजिटल हुआ होता।

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