पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने लंबी बीमारी के बाद 79 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनका दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में लंबे समय से इलाज चल रहा था. 79 वर्षीय मलिक किडनी की गंभीर समस्या से जूझ रहे थे और आईसीयू में भर्ती थे. 5 अगस्त मंगलवार को दोपहर 1 बजे अपनी अंतिम सांस ली. उनके निधन की खबर से उनके समर्थकों में शोक की लहर दौड़ गई.
सत्यपाल मलिक का जीवन उपलब्धियों और विवादों से भरा रहा है. उनकी बिना डरे सत्ता के खिलाफ बेखौफ टिप्पणियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत के कारण अक्सर चर्चा में रहते थे. मलिक जम्मू-कश्मीर, गोवा, बिहार और मेघालय के राज्यपाल रह चुके थे.
सत्यपाल मलिक का राजनीतिक सफर
सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई, 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में एक जाट परिवार में हुआ था. मात्र ढाई साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया था. मलिक ने मेरठ कॉलेज से बीएससी और एलएलबी की पढ़ाई पूरी की और छात्र राजनीति में सक्रिय रहे. उनके राजनीतिक गुरु चौधरी चरण सिंह के प्रभाव में उन्होंने 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत से विधायक का चुनाव जीता. 1980 लोकदल पार्टी से राज्यसभा में गए और 1984 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा.
1989-91 में जनता दल के टिकट पर अलीगढ़ से लोकसभा सांसद चुने गए. 2004 में बीजेपी में शामिल हुए और बागपत से चुनाव हार गए थे. 2012 में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुने गए थे. मलिक ने 2017-18 में बिहार, 2018-19 में जम्मू-कश्मीर, 2019-20 में गोवा और 2020-22 में मेघालय के राज्यपाल के रूप में कार्य किया. जम्मू-कश्मीर में उनके कार्यकाल के दौरान 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया, जिसमें उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही.
विवादों से भरा सफर
सत्यपाल मलिक का जीवन उपलब्धियों और विवादों से घिरा रहा है. जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान उनकी बेबाक टिप्पणियों और केंद्र सरकार के खिलाफ आरोपों के कारण अक्सर चर्चा में रहे. वे PM मोदी की नीतियों के मुखर आलोचक थे.
पुलवामा हमले पर विवाद
14 फरवरी, 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में 40 सीआरपीएफ जवानों को शहीद कर दिया गया. इस हमले के समय मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे. एक साक्षात्कार में उन्होंने पुलवामा हमले का जिम्मेदार केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय को बताया था. मलिक ने कहा कि सीआरपीएफ ने जवानों को लाने और ले जाने के लिए पांच विमानों की मांग की थी. लेकिन गृह मंत्रालय ने इसे खारिज कर दिया. उन्होंने बीजेपी पर पुलवामा हमले का 2019 के लोकसभा चुनावों में राजनीतिक लाभ उठाने का दावा किया.
मलिक ने 2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार का का खुलकर विरोध किया था. उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग को उठाया और कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर 700 किसानों की मौत के बावजूद सरकार ने संवेदना तक व्यक्त नहीं की. इसके अलावा, उन्होंने महिला पहलवानों के आंदोलन में भी उनकी आवाज उठाई और जंतर-मंतर से इंडिया गेट तक उनके साथ दिखे. इसी कारण उनकी सत्ता पक्ष से लगातार दूरी बनती चली गई.