भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर.गवई ने जजों की राजनीति में एंट्री पर गहरी चिंता जताई है. सीजेआई ने यह चिंता ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में आयोजित एक राउंड टेबल सम्मेलन में चर्चा के दौरान जताई. सीजेआई गवई ने यूके के शीर्ष जजों के साथ भारतीय न्यायपालिका की स्वातंत्रता, विश्वसनीयता, पारदर्शिता, जवाबदेही और मूल्यों पर एक लंबी चर्चा की. साथ ही उन्होंने रिटायर होने के बाद कोई भी सरकारी पद न लेने की बात कही.
सीजेआई ने कहा कि अगर कोई जज रिटायर होने के बाद कोई भी सरकारी पद लेता है या वह चुनाव लड़ता है तो इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर गंभीर असर पड़ता है. सीजेआई गवई ने जोर देते हुए कहा कि न्यायपालिका की वैधानिकता जनता के विश्वास पर निर्भर करती है. उन्होंने कहा यदि भी कोई जज रिटायर होने या इस्तीफा देने के तुरंत कोई पद स्वीकार करता है तो इससे यह धारणा बन सकती है कि उसके निर्णय किसी राजनीतिक या भविष्य के लाभ से प्रभावित थे. इससे लोगों के मन में न्यायपालिका के प्रति गलत धारणा बन सकती है.
देश में ऐसे कई जज रहे हैं जो रिटायर होते ही कोई न कोई सरकारी पद को स्वीकार किया. कुछ ऐसे भी जज हुए हुए जिन्होंने पद से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ा. जिसकी जमकर आलोचना भी हुई. इन जजों में कई बड़े नाम भी शामिल हैं जिसमें भारत के पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस कुमार गोयल जैसे जज भी शामिल हैं.
भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के रिटायर होने के कुछ समय बाद भारत को रिटायरमेंट के बाद बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा के लिए नियुक्त किया था. जिसके बाद बहुत से लोगों ने उनके द्वारा दिए फैसलों को संदेह की नजर से देखा. पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने बहुचर्चित राम मंदिर के पक्ष में फैसला दिया था.
वहीं सीजेआई ने कोलेजियम सिस्टम पर भी चर्चा की. उन्होंने अनुच्छेद 50 का हवाला देते हुए कहा कि शक्तियों का बंटवारा और स्वतंत्र नियुक्ति को जरूरी बताया. उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना होनी चाहिए चाहिए लेकिन न्यायपालिका की स्वतंत्रता की कीमत पर इसका समाधान नहीं होना चाहिए.
वहीं उन्होंने कहा कि जजों द्वारा संपतियों को सार्वजनिक करने जैसे फैसलों से लोगों का न्यायपालिका पर विश्वास बढ़ता है और उन्होंने अदालत की लाइव स्ट्रीमिंग को अच्छा कदम बताया लेकिन इससे फेक न्यूज फैलने के आसार बढ़ जाते हैं.