इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव द्वारा दिसंबर 2024 में मुसलमानों को लेकर दिए गए आपत्तिजनक बयान पर खुलासा हुआ है. इसके बाद यह मामला फिर से खबरों में आ गया है. दरअसल मीडिया में आई खबरों के अनुसार जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट एक आंतरिक जांच शुरू करना चाहता था लेकिन किसी कारण उसे रोक दिया गया. अब इस बात का खुलासा हुआ है.
क्या है पूरा मामला?
दिसंबर 2024 में विश्व हिंदू परिषद के एक सभा में जस्टिस शेखर यादव ने मुसलमान को लेकर एक विवादित टिप्पणी की थी. इसको लेकर देश में काफी हंगामा हुआ था. जस्टिस यादव ने कहा था कि भारत को बहुसंख्यको की इच्छा के अनुसार चलना चाहिए और केवल एक हिंदू ही भारत को विश्व गुरु बन सकता है. उन्होंने हलाला जैसी प्रथाओं को मुसलमानो के सामाजिक पिछड़ेपन से जोड़ते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड का समर्थन किया था. उन्होंने मुसलमानों को कठमुल्ला तक कह डाला था.
उनके इन बयानों के बाद सुप्रीम कोर्ट के वकील कपिल सिब्बल समेत 55 विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव का नोटिस भी डाला था. इस पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 10 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी थी और 17 दिसंबर को खुद देश के तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में कोलेजियम ने जस्टिस यादव को बंद कमरे में बुलाकर उनके बयान की समीक्षा की थी.
इसके बाद कॉलेजियम को जस्टिस यादव ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का आश्वासन दिया था लेकिन जनवरी 2025 में उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया. जस्टिस यादव ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर कहा था कि उनके बयान को तोड़ने का पेश किया गया और उन्होंने संवैधानिक मूल्यों के अनुसार ही समाज के मुद्दों को उठाया.
राज्यसभा सचिवालय से आई चिट्ठी और रुकी जांच
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जांच करने वाला था. लेकिन इस मामले पर राज्यसभा सचिवालय से आई सुप्रीम कोर्ट को एक चिट्ठी जिसके बाद उनके खिलाफ जांच रूज गई.
राज्यसभा सचिवालय की ओर से भेजे गए पत्र में कहा गया था कि ऐसी किसी भी कार्यवाही के लिए संवैधानिक अधिकार पूरी तरह से राज्यसभा के सभापति के पास है, इसलिए संसद और राष्ट्रपति ही इस पर निर्णय लेंगे. इस पत्र के बाद तत्कालीन चीफ जस्टिस ने जांच की योजना को वहीं रोक दिया .