2014 के बाद जिस रफ्तार से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का देशभर में विस्तार हुआ था, उसी रफ्तार से पिछले दो साल में विधानसभा चुनावों में पार्टी का पतन देखने को मिला है। दिल्ली की हार के साथ ही बीजेपी के हाथ से पिछले दो साल में छठा राज्य निकल गया है।
दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व के साथ पूरी ताकत झोंकने के बाद भी बीजेपी हार को टाल नहीं सकी। पिछले चुनाव में महज़ तीन सीटें पाने वाली बीजेपी दिल्ली चुनाव को हिन्दुस्तान बनाम पाकिस्तान की लड़ाई बनाने के बावजूद कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। अबतक के रुझानों के मुताबिक, वो सिर्फ 7 सीटों पर ही सिमटती नज़र आ रही है।
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दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने दावा किया था बीजेपी इस बार 48 सीटें जीतेगी। पीर्टी ने भी उनके इस दावे पर उम्मीद जताई थी कि इस बार उसका 20 साल का बनवास खत्म हो जाएगा। पार्टी ने इसी उम्मीद के साथ आक्रमक प्रचार किया। शाहीन बाग़ के मुद्दे को हर चुनावी सभा में ज़ोर-शोर से उठाया। अपने प्रतिद्वंदी को बदनाम करने के लिए उसे देश का गद्दार और आतंकवादी भी घोषित किया। लेकिन इसके बावजूद पार्टी को दिल्ली की जनता का समर्थन नहीं मिला।
पिछले दो साल से लगातार कई राज्यों की सत्ता से हाथ धोने वाली बीजेपी को दिल्ली में भी करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। ग़ौरतलब है कि देश में इस समय दिल्ली को मिलाकर 12 राज्यों में ग़ैर-एनडीए दलों की सरकार है। जबकि एनडीए के पास 16 राज्य हैं। विधानसभा चुनावों में हार की बात करें तो पिछले दो साल में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए दिल्ली को मिलाकर 6 राज्यों में सत्ता गंवा चुकी है।
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हाल के चुनावों की बात करें तो बीजेपी के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण महाराष्ट्र का चुनाव रहा। जहां सबसे ज़्यादा सीटें पाने के बावजूद बीजेपी सरकार बनाने नाकाम रही। हालांकि हरियाणा में बीजेपी नया गठबंधन कर सरकार बचाने में कामयाब तो हो गई, लेकिन राज्य में उसका प्रदर्शन चिंताजनक रहा।
वहीं झारखंड में बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। दो साल पहले 2017 की बात करें तो बीजेपी व सहयोगी पार्टियों के पास 19 राज्य थे। मगर उसने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवा दी।