14 मार्च 2025 को दिल्ली के एक जज के सरकारी बंगले में लगी आग और उस आग में जले नोट ने न्यायपालिका की वैधानिकता पर ही सवाल खड़े कर दिए थे. यह बंगला इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा का था. जस्टिस यशवंत वर्मा उस समय दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे. जस्टिस वर्मा के बंगले में कई बोरे जिले नोट मिले थे. मीडिया में जले नोट की खबर आने के बाद पूरे देश में काफी हंगामा हुआ था.
मामले को तूल पकड़ता देश सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाई कोर्ट स्थानांतरण कर दिया था. तत्कालीन CJI जस्टिस संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय आंतरिक जांच पैनल का गठन किया था.
28 मार्च को जस्टिस वर्मा के स्थानांतरण को अधिसूचित किए जाने के बाद उनसे न्यायिक कार्य छीन लिए गए थे. उनके खिलाफ बनी आंतरिक जांच समिति CJI को 64 पन्ने की की रिपोर्ट सौंपी गई थी जिसमें उनके खिलाफ सबूत पाए गए थे.
इस रिपोर्ट के आने के बाद CJI खन्ना ने रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की सिफारिश की थी.
इसके बाद सरकार उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है.17 जुलाई को जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर उनके खिलाफ की गई जांच रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश को चुनौती दी है.
संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि जस्टिस वर्मा के को हटाने को लेकर सभी दल सहमत हैं. सरकार और विपक्ष 21 जुलाई को शुरू होने संसद के मॉनसून सत्र में जस्टिस वर्मा के निष्कासन का प्रस्ताव ला सकती है. जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ एक्शन लेने का पावर नहीं है.
नरेंद्र नाथ मिश्रा ने लिखा, “जस्टिस यशवंत वर्मा अपने ख़िलाफ़ हो रही जांच को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. उनके घर करोड़ों कैश बरामद होने का आरोप.उनपर संसद के अगले सत्र में महाभियोग लाया जा सकता है. अगर संसद में महाभियोग चला तो जस्टिस वर्मा का डिफेंस भाषण दिलचस्प हो सकता है. डूबेंगे लेकिन.”
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