आपको बता दें कि फिल्म ’अजेय: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ ए योगी’ योगी आदित्यनाथ की एक बायोपिक फिल्म है. यह फिल्म किताब ‘द मॉन्क हू बिकेम चीफ मिनिस्टर’ से प्रेरित बताई जाती है. फिल्म को 1 अगस्त 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज होने की योजना थी, लेकिन सेंसर बोर्ड ने अभी तक इसके लिए सर्टिफिकेट जारी नहीं किया है. जिसको लेकर सियासत भी तेज हो गई है.
याचिका में इस बात भी उल्लेख किया गया कि सेंसर बोर्ड ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) लाने की मांग की जिसे निर्माताओं ने “निराधार” बताया. सिनेमेटोग्राफ एक्ट, 1952 और नए सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 2024 के तहत, सेंसर बोर्ड को निर्धारित समय-सीमा के भीतर आवेदनों पर कार्रवाई करना अनिवार्य है, लेकिन बोर्ड ने ऐसा नहीं किया.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में 15 जुलाई को भी सुनवाई की थी. जिसमें सेंसर बोर्ड ने 2 दिन का समय मांगा था. जिसके बाद मामले की अगली सुनवाई 17 जुलाई यानी आज हुई.
कोर्ट ने कहा कि सेंसर बोर्ड अपने वैधानिक दायित्वों से पीछे नहीं हट सकता. जिसमें सेंसर बोर्ड ने कोर्ट को बताया कि वह अगले दो दिनों में फैसला लेगा.
वहीं योगी आदित्यनाथ के जीवन पर बन रही फिल्म पर सेंसर बोर्ड द्वारा की जा रही देरी को दिल्ली बनाम लखनऊ की लड़ाई के रूप में भी देखा जा रहा है. कई सोशल मीडिया यूजर्स इसे योगी की राष्ट्रीय छवि को सीमित करने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं. आपको बता दें कि हाल के वर्षों में योगी आदित्यनाथ की बुलडोजर पॉलिटिक्स और सख्त प्रशासन ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक वर्ग विशेष के बीच लोकप्रिय हैं. उनकी बायोपिक को बाहुबली टच में बनाए जाने की बात ने इस चर्चा को और हवा दी है.
पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने तंज के लहजे में एक्स पर लिखा, “कहानी बेहद दिलचस्प है. योगी आदित्यनाथ की जय-जयकार पर बनी फिल्म सेंसर बोर्ड की फांस में फंस गई है. सेंसर बोर्ड ने कहा है कि पहले योगी के दफ्तर से NOC यानी अनापत्ति प्रमाण पत्र तो ले आओ. अब ये दुविधा वही है जो संभवत: एक ज़माने में नचिकेता के प्रश्नों पर यम को हुई थी. जो काम पिछले दरवाजे से करवाया जा रहा था, उसे खुलकर स्वीकारने को कहा जा रहा है. ये भी कोई बात हुई भला.
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